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________________ देवेन्द्रस्तव ___92. ज्योतिषियों के ( चन्द्र-सूर्य विमानों का वहन ) सोलह हजार ( देव करते हैं ), ( ग्रह विमानों का वहन ) आठ हजार ( देव करते हैं ), ( नक्षत्र विमानों का वहन ) चार हजार ( देव करते हैं ) और ( ताराविमानों का वहन ) दो हजार देव करते हैं। ___ 93. (वे विमानवाहक देव) पूर्व में सिंह, दक्षिण की ओर विशालकाय हाथी, पश्चिम दिशा में बैल और उत्तर दिशा में घोड़े ( का आकार ग्रहण करके विमान ) वहन करते हैं। [ज्योतिषियों की गति का प्रमाण व ऋद्धि] 94. सूर्य चन्द्रमा से तेज चलने वाले (हैं), उसी प्रकार ग्रह सूर्य से तेज चलने वाले (हैं) नक्षत्र ग्रहों से और तारें नक्षत्रों से ( तेज चलने वाले हैं)। 95. चन्द्रमा सबसे अल्प गति (वाले हैं) (और) तारें सबसे तेज गति (वाले हैं)। यह गतिविशेष ज्योतिष्क देवों को (कही गयो है)। . 96. तारें अल्प ऋद्धि (वाले होते हैं) निश्चय ही उससे महान ऋद्धि (वाले) नक्षत्र (होते हैं)। इसी तरह ग्रह नक्षत्रों से (महान् ऋद्धि वाले हैं और) ग्रहों से सूर्य और चन्द्र (महान् ऋद्धि वाले हैं) / ज्योतिष्क देवों के स्थान को सीमा और आभ्यन्तर परिमाण] .. 97. सबसे भीतर अभिजित् नक्षत्र (है), सबसे बाहर मूल नक्षत्र (है)। सबसे ऊपर स्वाति नक्षत्र (है) और सबसे नीचे भरणी नक्षत्र (है)। - 98. निश्चय ही चन्द्रों व सूर्यों के मध्य में सभी ग्रह-नक्षत्र होते हैं / ... (और) चन्द्रों और सूर्यों के नीचे, बराबर व ऊपर तारें (होते हैं)। ____ 99. (बिना व्यवधान के) ताराओं का (परस्पर) कम से कम (जघन्य) अन्तर पांच सौ धनुष और अधिक से अधिक (उत्कृष्ट) अन्तर चार हजार धनुष (दो गव्युति) का होता है / 100. (व्यवधान की अपेक्षा से) ताराओं का अन्तर कम से कम (जघन्य) दो सौ छाछठ योजन और अधिक से अधिक (उत्कृष्ट) बारह हजार दो (सौ) बयालीस (योजन कहा गया है)।
SR No.004356
Book TitleDevindatthao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_devendrastava
File Size12 MB
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