________________ देवेन्द्रस्तव 49. द्वीपकुमारों, दिशाकुमारों, अग्निकुमारों और स्तनितकुमारों के आवास अरुणवरद्वीप में ( होते हैं ) और उन्हीं में उनकी उत्पत्ति होती हैं। 50. वायुकुमार और सुवर्णकुमार इन्द्रों के आवास मनुष्योत्तर पर्वत पर ( होते हैं ) / हरि और हरिस्सह देवों के ( आवास ) विद्युत्प्रभ ( और ) माल्यवंत पर्वतों पर ( होते हैं ) / _ 51. हे सुंदरी! इन ( भवनपति ) देवों में जिसका जो बल-वीर्यपराक्रम (है); मैं उसका यथाक्रम से आनुपूर्वी पूर्वक वर्णन करता हूँ। __52. असुर और असुर कन्याओं के द्वारा जो स्वामित्व के लिए विषय है, उसका क्षेत्र जम्बूद्वीप और चमरेन्द्र की चमरचंचा राजधानी पर्यन्त (है)। . 53. असुर और कन्याओं के द्वारा, जो स्वामित्व के लिए विषय है, वही स्वामित्व बलि और वैरोचन के लिए समझा जाना चाहिए / 54. धरण एवं नागराज जम्बूद्वीप को फण के द्वारा आच्छादित कर सकते हैं। उनके समान ही अतिशय भूतानन्द में भी जानना चाहिए। 55. गरुडेन्द्र व वेणुदेव पंख के द्वारा जम्बूद्वीप को आच्छादित कर सकते हैं। उनके समान ही अतिशय वेणूदालि में भी जानना चाहिए। 56. पूर्ण भी एक हथेली के द्वारा जम्बूद्वीप को आच्छादित कर सकता है। उसके समान ही अतिशय वशिष्ठ में जानना चाहिए। 57. जलकान्त एक जलतरंग द्वारा जम्बूद्वीप को भर सकता है। उसके समान ही अतिशय जलप्रभ में जानना चाहिए /