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________________ देवेन्द्र को स्तुति [प्रस्तावना ] 1.3. त्रैलोक्य के गुरु, गुणों से परिपूर्ण, देवताओं और मनुष्यों द्वारा पूजित, ऋषभ प्रभृति जिनवरों तथा अन्तिम ( तीर्थंकर ) महावीर को नमस्कार करके निश्चय हो आगम का विज्ञ कोई श्रावक संध्याकाल के प्रारम्भ में, जिनके द्वारा अहंकार जीत लिया गया (है), (ऐसे वर्धमान की) मनोहर स्तुति करता है, (और) उस स्तुति करते हुए (श्रावक की पत्नी) सुखपूर्वक सामने बैठी हुई, समभाव ( सामायिक ) से युक्त दोनों हाथों को ( जोड़कर ) ( उस ) वर्धमान की स्तुति की सुनती है। [ वर्धमान जिनेन्द्र की स्तुति] 4. तिलकरूपी रत्न और सौभाग्यसूचक चिह्न से अलंकृत इन्द्र की पत्नियों के साथ हम भी, जिन्होंने अहंकार को नष्ट कर दिया है, ऐसे वर्धमान के चरणों में मस्तक को झुकाकर नमस्कार करते हैं / . 5. विनय से प्रणाम करने के कारण शिथिल हो गये हैं मुकुट ( जिनके ), ( ऐसे ) देवों के द्वारा अद्वितीय यश वाले ( तथा ) क्रोध को शान्त करने वाले वर्धमान के चरण वन्दित किये गये / 6. जिनके गुणों के द्वारा बत्तीस देवेन्द्र पूरी तरह से पराजित कर दिये गये हैं, ( इसलिए ) उनके कल्याणकारो चरणों के सौंदर्य का ( हम ) ध्यान करते हैं।
SR No.004356
Book TitleDevindatthao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_devendrastava
File Size12 MB
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