________________ देविंदत्थओ ( lxii ) दीहं वा हुस्सं वा जं संठाणं हवेज चरिमभवे / तत्तो तिभागहीणा सिद्धाणोगाहणा भणिया // 288 // तिन्नि सया तेत्तीसा धणुत्तिभागो य होइ बोधव्वो। एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिया // 289 // .. चत्तारि य रयणीओ रयणितिभागूणिया य बोधव्वा। एसा खलु सिद्धाणं मज्झिमओगाहणा भणिया // 290 // एक्का य होइ रयणी अट्ठव य अंगुलाई साहीया। एसा खलु सिद्धाणं जहण्ण ओगाहणा भणिया // 291 // ओगाहणाइ सिद्धा भवत्तिभागेण हुंति परिहीणा / संठाणमणित्थंत्थं जरा-मरणविप्पमुक्काणं // 292 // जत्थ य एगो सिद्धो तत्थ अणंता भवक्खयविमुक्का। अन्नोन्नसमोगाढा पुट्ठा सव्वे अलोगते // 293 / / असरीरा जीवघणा उवउत्ता सणे य नाणे य / सागारमणागारं लक्खणमेयं तु सिद्धाणं // 294 / / फुसइ अणंते सिद्धे सव्वपएसेहिं णियमसो सिद्धो / ते वि असंखेजगुणा देस-पएसेहिं जे पुट्ठा // 295 // केवलनाणुवउत्ता जाणंती सव्वभावगुण-भावे / पासंति सव्वओ खलु केवलदिट्ठीहऽणंताहिं // 296 //