________________ देविदत्थओ जह नाम कोइ मिच्छो नयरगुणे बहुविहे वियाणंतो। न चएइ परिकहेउं उवमाए तहिं असंतोए / 301 // इअ सिद्धाणं सोक्खं अणोवमं, नत्थि तस्स ओवम्म / किंचि विसेसेणित्तो सारिक्खमिणं सुणह वोच्छं // 302 // जह सव्वकामगुणियं पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई। तण्हा-छुहाविमुक्को अच्छिन्न जहा अमियतित्तो // 303 // इय सव्वकालतित्ता अउलं निव्वाणमुवगया सिद्धा। सासयमव्वाबाहं चिट्ठति सुही सुहं पत्ता // 304 // सिद्ध त्ति य बुद्ध त्ति य पारगय त्ति य परंपरगय त्ति / उम्मुक्ककम्मकवया अजरा अमरा असंगा य // 305 // . निच्छिन्नसव्वदुक्खा जाइ-जरा-मरण-बंधणविमुक्का। 'सासयमव्वाबाहं अणुहुंति सुहं सयाकालं // 306 // [जिणवरीणं इड्ढी] . सुरगणइड्ढि समग्गा सव्वद्धापिडिया अणंतगुणा / न पि पावे जिणइड्ढि णंतेहिं वि वग्गवग्गूहिं / / 307 / / भवणवइ वाणमंतर जोइसवासी विमाणवासी य / सव्विड्ढीपरियारो' अरहते वंदया होति / / 308 // 1. सासयमव्वाबाहं अणुहुंती सासयं सिद्धा सं० हं० / सासयमव्वाबाहं अणुहृवंती सयाकालं प्र० / सासयमव्वाबाहं अणुहवंति सुहं सयाकालं सा० / अव्वाबाहं सोक्खं अणुहुंती सासयं सिद्धा प्रज्ञापनासूत्रे गा. 179 / अत्र प्रज्ञापनासूत्रगतः पाठः शुद्धो निर्दूषणश्व / आदर्शगतास्तु सर्वेऽपि पाठभेदाच्छन्दोभङ्ग-पौनरुक्त्यहीनोक्तिदोषषिता वर्तन्ते / तदत्रार्थे तज्ज्ञाः श्रुतमर्मविदो बहुश्रुता एव प्रमाणम् // 2. सर्वश्चासौ ऋद्धिभूतः परिवारः सद्धिपरिवारः चकारश्चात्र शेषो द्रष्टव्यः, सर्वद्धिपरिवारश्व इत्यर्थः / सव्विड्डीपरिवारो हं० / सविड्डीपरियरिया प्र. सा०॥