________________ देवेन्द्रस्तव 196. अवेयकों में दो रनि प्रमाण ऊंचाई वाले देव होते हैं / अनुत्तर विमानवासी देवों की ऊंचाई एक रत्नि प्रमाण (होती है)। 197. एक कल्प से दूसरे कल्प (में देवों) की स्थिति (एक) सागरोपम से अधिक (होती है), और उस (कल्प) की ऊंचाई (उससे) ग्यारह भाग कम होती है। 198. विमानों की जो ऊंचाई है और (उनकी) पृथ्वी की जो मोटाई है, उन दोनों का प्रमाण बत्तीस सी योजन (होता है)। ... [ देवताओं की काम-क्रीडा] 199. भवनपति, वाणव्यंतर और ज्योतिषिक (देवों की) काम-क्रोड़ा शारीरिक होती है। हे सुन्दरी ! (अब) कल्पपतियों की कामक्रीड़ा विधि को कहूंगा। 200. सौधर्म व ईशान (कल्पों) में जो देव है, (उनकी) कामक्रीड़ा शरीर के द्वारा होती है और सनत्कुमार व माहेन्द्र (कल्पों) में (जो) देव (है, उनकी) कामक्रीडा स्पर्श के द्वारा (होती है)। 201. ब्रह्म और लान्तक कल्प में (जो) देव (हैं, उनकी) कामक्रीड़ा रूप के द्वारा होती हैं / महाशुक्र और सहस्रार (कल्पों) में (जो) देव (हैं), (उनकी) कामक्रीडा स्वर के द्वारा (होती है)। . 202. आणत, प्राणत कल्प में तथा आरण, अच्युत कल्प में (जो) देव (हैं, उनकी) मन के द्वारा कामक्रीड़ा (होती है) और जो दूसरे (देव है, उनके) कामक्रीड़ा नहीं होती है)। [देवताओं की गंध और दृष्टि ] . 203. गोशीर्ष, अगरू, केतकी के पत्ते, पुन्नाग का फूल, बकुल (पुष्प) की गंध, चंपक व कमल की गंध, और तगर आदि की सुंगध (देवताओं में होती है)।