________________ देवेन्द्रस्तव 170. ईशान कल्पपति (इन्द्र) अठ्ठाईस लाख (विमानों के स्वामी) होते हैं और सनत्कुमार कल्प में बारह लाख (विमान होते हैं) / 171. इसी तरह माहेन्द्र कल्प में आठ लाख (विमान) होते हैं। (और) ब्रह्म लोक कल्प में चार लाख (विमान होते हैं)। 172. लान्तक पचास हजार विमानों के (स्वामी होते हैं), महाशुक्र चालीस (लाख विमानों के स्वामी होते हैं) और सहस्रार छः हजार (विमानों के स्वामी होते हैं ) / 173. आणत प्राणत कल्प में चार सौ ( विमान ), आरण अच्युत कल्प में तीन (सो विमान होते हैं, इस प्रकार) इन चार कल्पों में (400 + 300) सात सौ विमान होते हैं। 174. इस प्रकार हे सुन्दरी ! जिस कल्प में जितने विमान कहे गये (हैं), उ न(के) कल्पपति (देवों) की स्थिति विशेष को सुनो। [वैमानिक देवों की स्थिति] 175. (सौधर्म कल्प के इन्द्र) शक महानुभाग की स्थिति दो सागरोपम ( कही गयी है ), ( इसी प्रकार ) ईशान कल्प में दो ( सागरोपम से ) कुछ अधिक एवं सनत्कुमार में सात (सागरोपम की स्थिति कही गयी है)। ___ 176. माहेन्द्र में सात (सागरोपम से) कुछ अधिक ‘ब्रह्मलोक में दस सागरोपम, लान्तक कल्प में चौदह (सागरोपम) और महाशुक्र में सत्तरह * (सागरोपम की स्थिति) होती है / 177. (इसी प्रकार) सहस्रार कल्प में अठारह सागरोपम की स्थिति, आणत में उन्नीस और प्राणत कल्प में बीस (सागरोपम की स्थिति होती है)। 178. आरण कल्प में पूर्ण इक्कीस सागरोपम ( की स्थिति ) और अच्युत कल्प में बाइस सागरोपम की स्थिति होती है /