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________________ पुनर्जन्म जैसी कोई बात नहीं है" / ' तब मैत्रेयोने कहा कि ऐसी बात वहकर हमें मोहमें मत डालो। इससे स्पष्ट है कि आत्मवादके सामने भूतवादका कोई मूल्य नहीं रह गया था। प्राचीन उपनिषदोंका काल प्रो० रानडेने ई० पू० 1200 से 600 तक माना है / यह काल भगवान् महावीर और बुद्ध के पहलेका है / अतः हम कह सकते हैं कि उन दोनों महापुरुषोंके पहले भारतीय दर्शनकी स्थिति जाननेका सावन उपनिषदोंसे बढ़कर अन्य कुछ हो नहीं सकता / अतएव हमने ऊपर उपनिषदोंके आधारसे ही भारतीय दर्शनोंकी स्थिति पर कुछ प्रकाश डालनेका प्रयत्न किया है / उस प्रकाशके आधार पर यदि हम जैन और बौद्ध दर्शन के मूल तत्त्वोंका विश्लेषण करें तो दार्शनिक क्षेत्रमें जैन और बौद्ध शास्त्रको क्या देन है यह सहज ही में विदित हो सकता है। प्रस्तुतमें विशेषतः जैन तत्त्वज्ञानके विषयमें ही कहना इष्ट है इस कारण बौद्ध दर्शनके तत्त्वोंका उल्लेख तुलनाकी वृष्टि से प्रसंगवश ही किया जायगा और मुख्यतः जैनदर्शनके मौलिक तत्त्व की विवेचना की जायगी। (आ) भगवान बुद्धका अनात्मवाद भगवान महावीर और बुद्धके निर्वाणके विषयमें जैन-बौद्ध अनुश्रुतियों को यदि प्रमाण माना जाय तो फलित यह होता है कि भगवान् बुद्धका निर्वाण ई० पू० 544 में हुआ था अतएव उन्होंने अपनी इहजीवनलीला भगवान् महावीरसे पहले समाप्त की थी और उन्होंने उपदेश भी भगवान्के पहले ही देना शुरु किया था। यही कारण है कि वे पार्श्व-परंपराके चातुर्यामका उल्लेख करते है। उपनिषद्कालीन आत्मवादकी बाढ़ को भगवान् बुद्धने अनात्मवादका उपदेश देकर मंद किया। जितने वेगसे आत्मवादका प्रचार हुआ और सभी तत्त्वके मूलमें एक परम तत्त्व शाश्वत आत्मा को ही माना जाने लगा उतने ही वेगसे भगवान् बुद्धने उस वादको जड़ काटनेका प्रयत्न किया / भगवान् बुद्ध विभज्यवादी थे / अतएव उन्होंने रूप आदि ज्ञात वस्तुओं को एक-एक करके नाम सिद्ध किया / उनकी दलीलका क्रम ऐसा है:3 1. "विज्ञानघन एवैतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थाय तान्येवानुविनश्यति न प्रेत्यसंज्ञा अस्तीत्यरे ब्रवीमीति होवाच याज्ञवल्क्यः / " बृहदा० 2. 4. 12 / 2. Op. Cit., P. 13 3. संयुत्त निकाय XII. 70. 32-37.
SR No.004351
Book TitleAgam Yug ka Anekantwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJain Cultural Research Society
Publication Year
Total Pages36
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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