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________________ अर्थात् अप का आना या प्रजापति में पृष्टिक तत्वका आरोप है जब कि इसमें आत्माको सिर्फ मूल कारण मानकर पंचभूतोंकी संभूति उस आत्मासे हुई है इतना ही प्रतियाध है ! मुण्डकोपनिषदमें जड़ और चेतन सभी की उत्पत्ति दिव्य, अमूर्त और अज ऐसे पुरुषसे मानी गई है। यहाँ भी उसे कर्ता नहीं कहा गया है / श्वेताश्वतरोपनिषद् में विश्वाविप देवाधिदेव रुद्र ईश्वरको ही जगत्कर्ता माना गया है और उसी को मूल कारण भी कहा गया है / उपनिषदों के इन वादों को संक्षिप्तमें कहना हो तो कहा जा सकता है कि किसीके मतसे असत्से सत्को उत्पत्ति होती है, किसीके भतसे विश्वका मूलतत्त्व सत् जड़ है और किसीके मतसे वह सत् तत्त्व चेतन है। एक दूसरी दृष्टिसे भी कारणका विचार प्राचीन काल में होता था। उसका पता हमें श्वेताश्वतरोपनिषदसे चलता है। उसमें ईश्वरको ही परम तत्व और आदि कारण सिद्ध करनेके लिये जिन अन्य मतोंका निराकरण किया गया है वे ये है:३. 1 काल, 2 स्वभाव, 3 नियति, 4 यदृच्छा, 5 भूत, 6 पुरुष, 7 इन सभी का संयोग, 8 आत्मा। - उपनिषदोंमें इन नाना वादोंका निर्देश है अतएव उस समय पर्यन्त इन वादों का अस्तित्व था ही इस बात का स्वीकार करते हुए भी प्रो. रानडेका कहना है कि उपनिषद्कालीन दार्शनिकोंकी दर्शनक्षेत्रमें जो विशिष्ट देन है वह तो आत्मवाद है। अन्य सभी वादोंके होते हुए जिस वादने आगेकी पीढ़ी के ऊपर अपना असर कायम रखा और जो उपनिषदोंका खास तत्त्व समझा जाने लगा वह तो आत्मबाद ही है। उपनिषदोंके ऋषि अन्तमें इसी नतीजे पर पहुँचे कि विश्वका मूल कारण या परम तत्त्व आत्मा ही है / परमेश्वरको भी, जो संसारका आदि कारण है, श्वेताश्वतरमें 'आत्मस्थ' देखनेको कहा है "तमात्मस्थं येऽनुपश्यन्ति धीरास्तेषां सुखं शाश्वतं नेतरेषाम्" 6. 12 / .1. मुण्ड० 2. 1. 2-9 / 2. श्वेता० 3. 2 / 6. 9 / 3. "कालः स्वभावो नियतिर्यदृच्छा भूतानि योनिः पुरुष इति चिन्त्यम् / संयोग एषां नत्वात्मभावादात्माप्यनीशः सुखदुःखहेतोः॥" श्वेता० 1.2 / 4. Constructive survey of Upanishads Ch. VI. P.246
SR No.004351
Book TitleAgam Yug ka Anekantwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJain Cultural Research Society
Publication Year
Total Pages36
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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