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________________ ( 4 ) हुई / इस कथनमें भी एक रूपकके जरिये असत्से सत्की उत्पत्ति का ही स्वीकार है। किसी ऋषिके मतसे असत्से सत् हुआ और वही अण्ड बन कर सृष्टिका उत्पादक हुआ / इन मतोंके विपरीत सत्कारणवादिओंका कहना है कि असत्से सत्की उत्पत्ति कैसे हो सकती है ? सर्वप्रथम एक और अद्वितीय सत् ही था। उसीने सोचा में अनेक होऊँ / तब क्रमशः सृष्टिको उत्पत्ति हुई है। सत्कारणवादिओंका भी ऐकमत्य नहीं। किसीने जलको, किसीने वायुको किसीने अग्निको, किसीने आकाशको और किसीने प्राणको विश्वका मूल कारण माना। * इन सभी वादोंका सामान्य तत्त्व यह है कि विश्वके मूल कारण रूपसे कोई मात्मा या पुरुष नहीं है / किन्तु इन सभी वादोंके विरुद्ध अन्य ऋषियोंका मत है कि इन जड़ तत्त्वोंमेंसे सृष्टि उत्पन्न हो नहीं सकती, सर्वोत्पत्तिके मूलमें कोई चेतन तत्त्व कर्ता होना चाहिये। पिप्पलाद ऋषिके मतसे प्रजापतिसे सृष्टि हुई है। किन्तु बृहदारण्यक मात्माको मूलकारण मानकर उसीमेंसे स्त्री और पुरुषकी उत्पत्तिके द्वारा क्रमशः संपूर्ण विश्वकी सृष्टि मानी गई है / ऐतरेयोपनिषदें भी सृष्टि-क्रम में भेव होने पर भी मूल कारण तो आत्मा ही माना गया है 6 / यही बात तत्तिरीयोपनिषद् के विषयमें भी कही जा सकती है। किन्तु इसकी विशेषता यह है कि आत्माको उत्पत्तिका.कर्ता नहीं बल्कि कारण मात्र माना गया है। 1. "आदित्यो ब्रह्मत्यादेशः। तस्योपव्याख्यानम् / असदेवेदमा आसीत् / तत् / सदासीत् / तत् समभवत् / तवाण्डं निरवर्तत / " छान्दो० 3. 19.1 / 2. "सदेव सोम्येदमन आसीदेकमेवाद्वितीयम् / तद्धक आहुरसदेवेदमन आसीदेकमेवाद्वितीयम् / तस्मावसतः सज्जायत। कुतस्तु खलु सोम्य एवं स्यादिति होवाच कथमसतः सज्जायतेति / सत्त्वेव सोम्येवमन आसीद एकमेवाद्वितीयम् तदक्षत बहुस्यां प्रजायेति" / छान्दो० 6. 2. / 3. बृहदा० 5. 5. 1. / छान्दो० 4. 3 / कठो० 2. 5. 9. छान्दो० 1. 9.1 / छान्दो० 1. 11.5 / 4. 3. 3. / 4. प्रश्नो० 1. 3 / 13 / / 5. बृहदा० 1. 4. 1.4 / 6. ऐतरेय० 1.1.3. / 7. तैत्तिरी० 2. 1. /
SR No.004351
Book TitleAgam Yug ka Anekantwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJain Cultural Research Society
Publication Year
Total Pages36
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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