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________________ भगवान् बुद्धके विभाज्यवादकी तरह भगवान् महावीरका विभज्यवाद भी भगवतीगत प्रश्नोत्तरों से स्पष्ट होता है / गणधर गौतम आदि और भगवान् महावीरके प्रश्नोत्तर नीचे दिये जाते हैं जिनसे भगवान् महावीरके विभज्यवाद की तुलना भ० बुद्धके विभज्यवादसे करनी सरल हो सके : गौतम–कोई यदि ऐसा कहे कि-'मैं सर्व प्राण,सर्वभत, सर्वजीव, सर्वसस्वकी हिंसाका प्रत्याख्यान करता हूँ तो क्या उसका वह प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान है या दुष्प्रत्याख्यान ? भ० महावीर-स्यात् सुप्रत्याख्यान है और स्यात् दुष्प्रत्यास्थान है। गो०-भन्ते! इसका क्या कारण है ? .. .. भ०-जिसको यह भान नहीं कि ये जीव हैं और ये अजीव, ये त्रस हैं और ये स्थावर; उसका वैसा प्रत्याख्यान दुष्प्रत्याख्यान है / वह मृषावादी है। किन्तु बो यह जानता है कि ये जीव हैं और ये अजीव, ये स हैं और ये स्थावर उसका वैसा प्रत्याख्यान सुप्रत्याल्यान है / वह सत्यवादी है। -भगवती श० 7, उ० 2, सू० 270 जयंती-भते! सोना अच्छा है या जागना ? भ० महावीर-जयन्ती! कितनेक जीवोंका सोना अच्छा है और कितनेक बीवोंका जागना अच्छा है। ज०-इसका क्या कारण है ? भ० महावीर-जो जीव अधर्मी है, अधर्मानुग हैं, अमिष्ठ हैं, अधर्माख्यायी हैं, अधर्मप्रलोकी हैं, अधर्मप्ररञ्जन हैं, अधर्मसमाचार है अधार्मिकवृत्तिवाले हैं, वे सोते रहें यही अच्छा है / क्योंकि जब वे सोते होंगे तब अनेक जीवों को पीड़ा नहीं देंगे। और इसप्रकार स्व, पर और उभय को अधार्मिक क्रियामें नहीं लगावेंगे अतएव उनका सोना अच्छा है। किन्तु जो जीव धार्मिक हैं, धार्मिकवृत्ति वाले हैं उनका तो जगना ही अच्छा है। क्योंकि ये अनेक जीवोंको सुख देते हैं और स्व, पर और उभयको वे धार्मिक अनुष्ठानमें लगाते हैं अतएव उनका जागना ही अच्छा है। ! जयन्ती०-भन्ते! बलवान् होना अच्छा है या दुर्बल ?
SR No.004351
Book TitleAgam Yug ka Anekantwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJain Cultural Research Society
Publication Year
Total Pages36
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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