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________________ . ( 1 ) आनन्दने एक प्रश्न भगवान बुद्धसे किया कि आप बारबार लोक शून्य है ऐसा कहते हैं इसका तात्पर्य क्या है ? बुद्धने जो उत्तर दिया उसीसे बौद्ध दर्शन की अनात्म विषयक मौलिक मान्यता व्यक्त होती है: "यस्मा च खो आनन्द सुब्ज अतेन वा अत्तनियेन वा तस्मा सुझो लोको ति वुच्चति / किं च आनन्द सुझं अतेन वा अतनियेन वा; चक्खं खो आनन्द सुआं अतेन वा अत्तनियेन वा. . . . . रूपं . . . . . रूपविञआणं . : . . ..." त्यादि।-संयुत्तनिकाय XXXX. 85 भगवान् बुद्ध के अनात्मवादका तात्पर्य क्या है ? इस प्रश्नके उत्तरमें इतना स्पष्ट करना आवश्यक है कि ऊपरकी वर्चासे इतना तो भलीभांति ध्यानमें आता है कि भगवान् बुद्धको सिर्फ शरीरात्मवाद ही अमान्य इतना ही नहीं बल्कि सर्वान्तर्यामी नित्य, ध्रुव, शाश्वत ऐसा आत्मवाद भी अमान्य है। उनके मतमें न तो आत्मा शरीरसे अत्यन्त भिन्न ही है और न आत्मा शरीरसे अभिन्न है / उनको चार्वाकसम्मत भौतिकवाद भी एकान्त प्रतीत होता है और उपनिषदोंका कूटस्थ आत्मवाद भी एकान्त प्रतीत होता है। उनका मार्ग तो मध्यममार्ग है, प्रतीत्यसमुत्पादवाद है। - वही अपरिवर्तिष्णु आत्मा मर कर पुनर्जन्म लेती है और संसरण करती है ऐसा मानने पर शाश्वतवाद होता है और यदि ऐसा माना जाय कि मातापिताके संयोगसे चार महाभूतोंसे आत्मा उत्पन्न होती है और इसीलिये शरीरके नष्ट होते ही आत्मा भी उच्छिन्न-विनष्ट और लुप्त होती है, तो यह उच्छेदवाद है। तथागत बुद्धने शाश्वतवाद और उच्छेदवाद दोनों को छोड़कर मध्यम मार्गका उपदेश दिया है / भगवान् बुद्धके इस अशाश्वतानुच्छेदवावका स्पष्टीकरण निम्न संवादसे होता है 'क्या भावन् गौतम ! दुःख स्वयंकृत है ?' 'काश्यप ! ऐसा नहीं है। 'क्या दुःख परकृत है ?' 'नहीं।' 'क्या दुःख स्वकृत और परकृत है ?' 1. दीघनिकाय, 1, ब्रह्मजाल सुत / 2. संयुक्तनिकाय XII. 17.
SR No.004351
Book TitleAgam Yug ka Anekantwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJain Cultural Research Society
Publication Year
Total Pages36
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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