________________ शत्रुञ्जय-कल्यवृत्ती 00000000000000000000000000000000000 जातेषु भूरि पुत्रेषु चन्द्रवेगो नृपाङ्गजः / विख्यातोऽजनि सर्वत्र विनयादिगुणसुन्दरः // 22 // ततः पित्रा ददे राज्यं चन्द्रवेगाय सूनवे / चन्द्रवेगश्च सर्वेषां भ्रातृणामभवन्मतः // 23 // पृथुदेशप्रदानेन चन्द्रवेगो नरेश्वरः / रञ्जयामास निःशेषान् भ्रातृन् सन्मानदानतः // 24 // पञ्चमात् स्वर्गतोऽभ्येत्य तदा सारस्वतैः सुरैः। प्रवत्तीय प्रभो ! धर्म-तीर्थमित्युदितं स्फुटम् // 25 // चन्द्रवेगस्ततो राज्यं वितीर्य वृद्धसूनवे / धरानृणकृते दानं वर्ष यावद्ददौ वरम् // 26 // लात्वा दीक्षामयं भूरि-कर्मक्षपणतोऽन्तिमम् / अवाप केवलज्ञानं लोकालोकप्रकाशकम् // 27 // बोधयन् भविनो भूरीन् ग्रामे ग्रामे पुरे पुरे / पामस्तीर्थङ्करः शत्रु-ञ्जयाद्रौ समवासरत् // 28 // तदेति पुरतो भूरि-भव्यानां देहिनां स्फुटम् / उपदेशं ददौ तीर्थ-करो मधुरया गिरा // 29 // तावद् गर्जति हत्यादि-पातकानीह सर्वतः / यावत् शत्रुञ्जयेत्याख्या श्रयते न गुरोमुखात् // 30 // पदे पदे विलीयन्ते भवकोटिभवान्यपि / पापानि पुण्डरीकाद्र-र्यात्रां प्रति यियासताम् // 31 // श्रुत्वेति तीर्थमाहात्म्यं भविनो भूरिशस्तदा / तीर्थङ्करान्तिके दीक्षां ललुः संसारतारिणीम् // 32 // तदा तत्र प्रजापालो महीपालो जिनेशितुः / प्रासादं कारयामास भवपर्वतसोदरम् // 33 // चन्द्रवेगजिनाधीशः साधुकोटिद्वयान्वितः / शत्रुञ्जये ययौ मुक्तिं सर्वकर्मव्रजक्षयात् // 34 // शत्रुञ्जयावनिस्पर्शाज जीवा भव्याः शुभोदयाः / पुण्यपालनराधीशा इव गच्छन्ति निवृत्तिम् // 35 // / अथ-पुण्यपाल कथा // तस्येदं कथानकं तथाहिपुण्यपुर्यों नृपः पुण्य-पालः पुण्यकरः सदा / पालयामास भूपीठं न्यायमार्ग प्रवत्तयन् // 36 // तस्यासीत् कमला पत्नी शीलादिगुणशालिनी / पुत्रः पद्मरथो नाम्ना धाम्ना मन्मथसन्निभः।।३७॥ राजान्यदा सभासीनो मन्त्रिसामन्तसंयुतः। स्वदेश परदेशादि-वाता पप्रच्छ मन्त्रिणः // 38 // तदा वैदेशिको-मर्त्य एकस्तत्रागतो नटः। प्रणम्य भूपति तस्था-वग्रे पश्यन् नृपाननम् / 39 / भूपोऽप्राक्षीत् कुतः स्थानात् कुतो देशादिहागतः ? / किमर्थं ? किं त्वया दृष्टमपूर्व ? किं श्रुतं 1 वद // 40 // वैदेशिको जगौ पद्म-पुराद् भ्राम्यन्नहं भुवि / अगा कुन्दपुरोपान्ते नानोद्यानविराजिते // 41 // तत्रासीन्मेदिनीपालः प्रजापालाभिधो नयी / तस्याभूच्छीमती पत्नी सप्ताऽभूवंस्तनूभवाः // 42 // बहूपयाचितैस्तेषां सुतानामुपरि क्रमात् / एकाऽभून्नन्दिनी नन्दा नाम्ना रूपजितामरी // 43 // धर्मकर्मकला वर्या शिक्षिता धुरि नन्दनाः / पश्चाद् भूपतिनन्दिन्यः पित्रानि परिणायिताः // 44 // पठन्ती नन्दिनी नन्दा बुधोपान्ते निरन्तरम् / भारतीवाभवद्वर्य-विद्याम्भोनिधिपारगा // 45 // यतः-'जले तैलं खले गुह्य पात्रे दानं मनागपि / प्राज्ञ शास्त्र स्वयं याति विस्तारं वस्तुशक्तितः // 46 // ज्वलनोत्पादिकां विद्यां तुष्टेन व्योमगामिना / प्रददे पुण्यपालाय धर्मात् किं किं भवेन्नहि ? // 47 // यतः-'धनदो धनमिच्छूनां कामदः काममिच्छताम् / धर्म एवापवर्गस्य पारम्पर्येण साधकः // 48 // ध्यातं राज्ञाऽन्यदा सर्व-वविद्याविशारदा / विनीता विद्यते पुत्री मदीयेयं मनोहरा // 46 //