________________ अरजिनस्य शत्रुञ्जयागमनसम्बन्धः 65 000000000000000 0000000000 प्रजल्पन्तीं निजोत्कर्ष राज्ञी तैलपनन्दिनीम् / निरीक्ष्यां वितन्वानां (नो) प्राहेत्यणक्षरस्तदा // 17 // "कल्ले बोरज वीणती अञ्ज न जाणइ खंख (तेल)। पुणरवि अडवि कर सि घर न सहू एह अणक्ख // 18 // ततश्च कुम्भकृद् गत्वा पुरादहिनिकेतनम् / कृत्वा तस्थौ वितन्वान ईयां सर्वजनेष्वपि // 16 // इतस्तत्र समायाता धर्मसुन्दर सूरयः / अणक्षरस्य पुरतो जगदुर्धर्मदेशनाम् // 20 // यतः-"कोहो पीइं पणासेइ माणो विणयनासणो / माया मित्ताणि नासेइ लोभो सव्वविणासणो // 21 // कोह पयठो देहधरि तिन्नि विकार करेइ / अप्पं तावइ परतपइ परतह हाणि करेइ // 22 // जल्पनादि परेषां ये लक्ष्मी चैक्ष्य रुपन्ति च / ते लभन्ते इहाऽमुत्र विपदश्च पदे पदे // 23 // अणक्षरो जगावीयां परेषु कुर्वता मया / उपार्जितं तमो यद्य-च्छुट्टनं स्यात्ततः कथम् ? // 24 // गुरुगोक्त महेला-गो-बाल-संयतघातिनाम् / शुद्धिर्भवति सिद्धाद्रौ तपो वितन्वतां नृणाम् // 25 // यतः-"सिंहव्याघ्राहिशंबर-पक्षिणोऽन्येऽपि पापिनः / दृष्ट्वा शत्रुञ्जयेऽर्हन्तं भवन्ति स्वर्गगामिनः // 26 // न रोगो न च सन्तापो न दुःखं न वियोगिता / न दुर्गतिर्न शोकश्च पुसां शत्रुञ्जयस्पृशाम् // 27 // श्रुत्यैतद् गुरुणा प्रोक्त-मणक्षरोऽपि कुम्भकृत् / ययौ शत्रुञ्जये क्षेप्तु पापपुञ्ज पुरार्जितम् // 28 // तत्र षष्टाष्टमादीनि तपांसि तस्य कुर्चतः / उत्पन्नं केवलज्ञान-मणक्षरस्य गेहिनः // 26 // देवतादत्तलिङ्गोऽथ स्वर्णपद्मे निविश्य च ! कुम्भकृत्केवली धर्मो-पदेशं प्रददाविति // 30 // यतः-"धम्मो मंगलमउलं ओसहमउलं च सब दुक्खाणं / धम्मो बलं च विउलं धम्मो ताणं च सरणं च / 31 / इत्यादि देशनां तस्य श्रुत्वा भव्याङ्गिनस्तदा / श्राद्धधर्म यतिधर्म जगृहुः शिवशमदम् // 32 // दो चेव जिणवरेहि जाइजरामरणविप्पमुक्केहिं / लोगम्मि पहा भणिया सुसमणु-सुसावत्रो वावि // 33 // अनेकसाधुसंयुक्तः कुम्भकृत् केवली क्रमात् / आयुःक्षये ययौ मुक्ति-नगरी सिद्भपर्वते / / 34 // एवं धर्मोपदेशेन प्रबोध्य भविनो बहून् / कुन्थुतीर्थङ्करोऽन्यत्र व्यहार्षात् सिद्धपर्वतात् // 35 / / ॐ इति श्री कुन्थुतीर्थङ्करस्य शत्रुञ्जयागमनसमवसृतिस्वरूपम् // // अथ अरजिनस्य शत्रुञ्जयागमनसम्बन्धः / / हस्तिनागपुरे वये सुदर्शनमहीपतिः / पपाल पृथिवीं सुष्टु न्यायमार्गेण सन्ततम् // 1 // तस्य देव्यभिधा भार्या गजादिस्वप्नसुचितम् / असूत तनयं चञ्च-ल्लक्षलक्षणलक्षितम् // 2 // वासवेन कृते जन्मो-त्सवे जन्मोत्सवं पिता / कृत्वा सूनोररेत्याह्वा-मदात् सज्जनसाक्षिकम् // 3 // साधयित्वा क्रमात् पृथ्वीं षट्खण्डां चक्रिराडरः / पपाल पृथिवों न्याय-मार्गेण सन्ततं ध्रुवम् // 4 // त्यक्त्वा राज्यं व्रतं लात्वा तप्त्वा तीव्र तपः पुनः / अवाप केवलज्ञान-मरतीर्थकरः क्रमात् // 5 // अरस्तीर्थेश्वरः क्षोणी पावयन् पदरेणुभिः / अनेकसाधुसंशोभी सिद्धाद्रौ समवासरत् / / 6 / / तत्रेति भव्यजीवानां पुरतो धम्म देशनाम् / चकारारजिनाधीशो वाण्या मधुरया तदा // 7 //