________________ 172 शत्रुञ्जय-कल्पवृत्ती .000000000000000 40000000000000000000000000000000000000000000 दृष्ट्वा विभीषणं यानं पुष्पकं चाधिरुह्य च / रामो यातुमयोध्यायां चचाल लक्ष्मणादियुग / / 968 // भूपेभ्य उपदां गृह्णन् ग्रामे ग्रामे पुरे पुरे / बहुमानं ददस्तेभ्यो-ऽचालीद् दाशरथिस्तदा // 666 / / अयोध्या सुशोभायां तलिकातोरणादिभिः / रामो भ्रातृयुतश्चक्रे प्रवेशं रुचिरोत्सवम् / / 670 // आदौ जिनालये गत्वा प्रणम्य श्रीजिनाधिपम् / उदारैः स्तवनै वक्र स्तुति रामनरेश्वरः / 671 / / तथाहि-प्रातः प्रभूतपुरुहूतनतानि पश्य पश्येति पश्यति पदानि तव प्रभोर्यः / तस्यामियामलमलं विमलं मरुत्वान् संसेवते समसुपर्वयुतो नितान्तम् // 672 // त्रैलोक्यलोककुमुदप्रमदप्रदायी कल्कान्धकारनिकरैकनिराकरिष्णुः / आनम्रसर्वसुरराजसमाज ! राज-राजेति राजति तवाननपूर्णिमेन्दुः // 673 // जय जयेति जपन्ति निरन्तरं मनसि नाम नरास्तव ये विभो ! / तुद तुदेति तुदन्ति न तान् मनाग मदनमोहमुखान्तरवैरिणः // 674 // निःशेषनाकिनरनाथनताघ्रिपद्म ! पद्मातनूभवभवाभवभीतिनेतः / भक्त्या भवी भुवि विभो ! वदनं प्रपश्यन् सत्सातभाग भव भवेति भवेन् न को हि॥ अर्थिभ्यो मार्गितं दानं दत्त्वा सन्मान्य सज्जनान् / रामो निजालयं वयं समायातः सदुत्सवम् // 676 // तदाऽयोध्यापुरि भूरि-कुलकोटिकुटुम्बयुग् / वर्यवप्रमहेभ्याली-संयुता शोभतेतराम् // 677 / / यतः-सुरभवणसमं गेहं खितिसरो णाम हवइ पायारो। मेरुस्स चूलिया इव तह य सभा वेजयंती अ॥६७८|| साला य विउलसोहा चंक्रमणं हवइ सुविहिनामेणं / गिरिकूडं पासायं तु गं अवलोअणं चेव // 676 / / नामेण वद्धमाणं चित्तं पेछाहरं गिरिसरिच्छं / कुकुडअंडावयवं कूडं गब्भगिह रम्मं // 980 // कप्पतरुसमं दिव्वं एगत्थंभं च हवइ पासायं / तस्स पुण सम्बो चिठियाणि देवीण भवणाई // 11 // अह सीह[साहवाहणीवित्र सेनाहर विट्ठरं दिणयराभं / ससिकिरणसन्निभाई चमराई मउअफरिसाइं // वेरुलिअविमलदंडो छतं ससिसन्निहं सुहच्छायं / विसमोइयाउ गयणं लंघती पाउयायो य / 983 // वत्थाइ अणग्याई दिव्बाई चेव भूसणवराई / दुभिज चित्र कवयं मणिकुडल जुवलयं कंतं // 984 // खग्गं गया य चक्कं कणयारि सिलीमुहा विअ अमोहा / विविहाइ महत्थाई अण्णाणि वि एवमाईणि / / पण्णास सहस्साई कोडीणं साहणस्स परिमाणं / एक्का य हवइ कोडी अमहिया पवरधेणूणं // 986 // सत्तरि कुलकोडीयो अहियाउ कुटुंबियाण जिवाणं / साएयपुरवरीए वसंति धणरयणपुर गारो // 17 // कहलाससिहरसरिसोवमाइ भवणाई ताण सबाई / बलयगवामहिसीहिं समाउलाई. सुरम्माई // 988 // पोक्खरिणिदीहियासु अ आरामुज्जाणकाणणसमिद्धा / जिणवरघरेसु रम्मा देवपुरी चेव साएया|६८६॥ जिणवरभवणाणि तहिं रामेणं कारिआणि बहुअाणि / हरिसेणेण व तइया भविग्रजणाणंदिअकराई // 660|| गामपुरखेड़ कब्बडणयरी सा पट्टणाण मज्झत्था / इंदपुरी व कया साएया रामदेवेण // 661 // सव्यो जणो सुरूवो सबो धणधन्नरयणसंपुण्णो / सव्यो करभररहिलो सयो दाणुजनो णिच्चं // 962|| अत्रान्तरे लसद्गीत-नृत्यवायेषु भूरिषु / सुखलीनोऽपि भरतो-ऽसारं संसारमीक्षते // 663 //