________________ जैनगीतासम्बन्धः 144 00000000000000000000001 00000 उक्त'च-"भजइ रहो रहेण निवडइ हत्थि समं गयवरेणं / तुरएण समं तुरंगो पायको सह पयक्केणं // 1 // सर-सत्तिवाण-मोग्गर-फलिह-सिला सेल्लाउहसएसु / खिप्पंतेसु समत्थं छन्न गयणंगणं सहसा // 2 // " ततो लङ्कापुरीस्थस्य सुमालिमेदिनीपतेः / अभृद् रत्नश्रवाः पुत्रो वर्यलक्षणलक्षितः // 343 / / सुमाली स्वतं राज्ये न्यस्य पार्श्व गुरोर्मुदा / प्रव्रज्य निखिला साता-सातक्षयाद् ययौ शिवम् // 344 // भृपस्य रत्नश्रवसोऽभूवन् विद्यावशा वरा / प्रेयसी कैकसी चासीत् शीलादिगुणशालिनी ॥३४शा कैकसी सूर्यचन्द्रादि-स्वप्नसूचितमङ्गजम् / अस्त शोभने घस्र लसल्लक्षणलक्षितम् / / 346 / / सूनोरारोपिते कण्ठे हारे नवमणीमये / प्रतिबिम्बत प्रास्ये तु मुखान्यासँस्तदा दश / / 347 // "रयणकिरणेसु एत्तो मुहाई नव नियवयणसरिसाइं / हारे दिट्ठाइ फुडं तेण कयं दहमुहो नामं // 1 // " ततो दशास्य इत्यासी-त्तस्य नाम जनेऽखिले / वर्द्धमानः क्रमान्माता-पित्रोर्मोदकरोऽजनि // 348|| कैकसी सुषुवे कुम्भकर्ण पुत्रं च सुन्दरम् / ततः सूर्पणखां पुत्री रूपनिर्जितनिर्जरीम् / / 346|| ततो बिभीषणं पुत्रं चञ्चत्स्वप्नाभिसूचितम् / कैकसी सुखतोऽसूत शोभने वासरे स्फुटम् // 350 // बर्द्धमानाः क्रमादेते रावणाद्याः शुभोदयात् / बभूवू रूपलावण्य-लक्ष्मीकलितविग्रहाः // 351 / / मातापित्रोमुखात् स्वस्य द्विषां पराभवं बहु / भीमारण्ये त्रयोऽप्येयू रावणाद्याः सहोदराः // 352 // तत्र पूजोपहाराद्यैः पुष्पैस्तीव्रतपःकृतेः / रोहिण्याद्यां वरां विद्या-मसाधयश्च ते तदा // 353 // दशास्यस्याऽभवन् विद्याः सहस्रशो वशंवदाः / पूर्वपुण्योदयात् किं किं जायते न तनूमताम् ? // 354 // आसन् विद्याः सहस्र तु वशगाः पुण्ययोगतः / अन्या अपि दशास्यस्य विद्याः साधयतस्तदा // 35 // विद्याः साघयतस्तत्र कुम्भकर्णस्य भूपतेः / आसन् विद्या सहस्र तु पूर्वपुण्योदयात्तदा // 356 // विद्यानां त्रिंशतान्यासन् विभीषणमहीपतेः / पूर्वपुण्योदयेनैव विद्याः साधयतस्तदा // 357 / यतः सव्वायरेण एवं पुण्णं कायव्वयं मणूसेण / पुण्णे णवरि लब्भइ कम्ममिद्धा य सिद्धीओ ||358 // __उक्त च ग्रन्थान्तरे रावणस्य विद्याप्राप्तिस्वरूपम् - कालम्भि अ संपुण्णे सिद्धाश्रो महंतविजाप्रो / आगासगामिणी कामदायिणी कामुगामिणी // 1 // विजयं दोणि वारा जय कम्मा तह य पन्नत्ती / अह भानुमालिणी विअ अणिमालिमाइ णायव्वा // 356 // मणथंभणी य खोहा विजा सुहदाइणी रो रूवा / दिण-रयणी करी विजा परीय पयत्तोसमा दिट्ठी // 360 // अजरामरा विसन्ना जलथंभणि अग्गिथंभगी चेव / गिरिदारिणी इत्तो विजाय विव लोयणी चेव // 361 // अरितिद्धंसी घोरा खीरा य भुयंगिणी तह तह। तरुणी / भुवणा विजाय पुणो दारुणीमयणासणीय तहा / 362 / रवितेया भय जणणी ईसाणी तह भवेजयाविजया / वंधणि वाराहावित्र कुडिला कित्ती मुणेअव्या // 363 // वाउब्भावायमत्ती कावेरी संकरी य उद्दिट्ठा / जोगि सीबलमहणी चंडाभावरिसिणी चेव // 364 // विजाओ एवमाइ सिद्धाश्रो तस्स बहुविह गुणाश्रो / थोवदिवसे विजाया वसया दसमुहस्स तहिं // 36 // सव्वा रहइ विद्धी आगास गमा य जंभिणी चेव / निदाणि पंचमिश्रा सिद्धा विजाय कुभकण्णस्स // 366 // सिद्धत्था अरिदमणी निव्वाया खगामिणी पमुहा / एप्राविहु विजाय पताअो विभोसणेण तया // 367 / / एवंविधमहाविद्याः प्राप्य त्रयोऽपि बान्धवाः / महोत्सवेन पुर्यन्तः समायुनिजमन्दिरम् // 368 //