________________ शत्रुञ्जय-कल्पवृत्ती 1000000000000000000000000000000000000 1000000000000000000004 इन्द्राणी मालिनं पुत्र प्रसूते स्म सुमालिनम् / माल्यवन्तं क्रमात् चारु-लग्ने शोभनवासरे // 321 // किष्किन्धे पतेः पत्न्या श्रीमालया विशिष्टया / जनितश्चादित्यरजा ऋक्षरजाश्च नन्दनौ // 322 // नित्यार्हतः प्रणम्यायान् किष्किन्धिर्मधुपर्वते / किष्किन्धाहपुर स्थाप-यित्वा वासमचीकरत् // 323 // सुकेशस्य सुता रुष्टा लड़कायां च समेत्य ते / जघ्नुश्वाशनिवेगस्य निर्धाताभिधसेवकम् // 324 // लङ्कायामभवन् माली राजा प्रपालयन् महीम् / किष्किन्धायामभूदादि-त्यरजा वरनीतिमान् // 32 // मालिनश्चाभवत् प्रीतिरादित्यरजसि स्फुटम् / प्राभृतादिप्रदानेन तयोः प्रीतिविद्धते // 326 // विद्याभृतोऽशनिवेग-नाम्नोऽभूद् गुणसुन्दरी / पत्नी पुत्रः सहस्रारा-भिधोऽजनि मनोहरः // 327|| सहस्रारस्य पत्न्यासी-नाम्नाथ चित्रसुन्दरी / इन्द्रनामाभवत् पुत्रो मातृपितृप्रमोददः // 328 / / इन्द्र इन्द्र इवाशेष-लोकपालव्यवस्थया / राज्यं कुर्वन् तृणं सर्व विश्व च मन्यतेतराम् // 326 // इन्द्रः पाताललङ्कायां समेत्य भूरिभृत्ययुग् / रक्षांसि वानराँश्चैव न्यधात् सेवकभावतः // 330 // इत इन्द्रेण विद्याभृ-नाथेन रक्षता भुवम् / स्थापिता लोकपालाश्च नाम दत्त्वा महीभृताम् / 331 / / यतः-"चत्तारि लोगपाला सत्त य अणियाई तिन्नि परिसायो / एरावणो गइंदो वजच महा उहं तस्स // 1 // चत्तालीसं ठवित्रा तिनि सहस्सा हवंति जुबईणं / मंती विहप्फइ से हरिणेगमेसी बलानीग्रो // 2 // तो सो नमि व नजइ सव्वेसि खेअराणं सामित्तं / कुणइ सुवीसत्थमणो विजाबलगन्धिो धीरो // 3 // " इन्द्रमेवंविधं श्रुत्वा जेतु माली नरेश्वरः / भ्रातृभिर्वारितोऽप्येव चचालाऽतुलसैन्ययुग // 332 / / सुमाली सोदरः प्राह वेरी सोऽतीव दुःशकः / तेन भेदेन हन्येत स वैरी बलवानपि // 333 // उक्त च–“सम्बन्थ सत्यकुसलो भणइ सुमाली सहोदरं जेट्ट। इत्थं कुणहावासं अहव पुरि पडिनिअत्ता सो // 1 // दीसंति महाघोरा उप्पाया सउणया य विवरीया / एए कहं अजय अम्हं न थेत्थ संदेहो // 2 // रिद्वखरतुरयवसहा सारससयवत्त कोल्हायाईया / वासंति अ दाहिणिल्ला एए अजयावहा अम्हं // 3 // " श्रु त्वेति प्रोक्तवान् माली गर्वितः सोदरं प्रति / किं शूकरभयात् सिंहो रक्षति स्वगृहं क्वचित् ? // 334 // नदणवणे महंता जिणालया कारिया रयणचित्ता / अणुहूयं य वरसुहं दाणं च किमिच्छियं दिएणं / // 335 // समलंकिअं च गोत्तं जसेण ससिकुदनिम्मलयरेणं / जं होहिइ समरमज्झे मरणं किं न य जुतं // 1 // एवं सुमालिवयणं अवगणेऊण पत्थिो माली / वेयडनगरिदे रहने उरे चक्कवालिपुरं // 2 // " आयान्तं मालिनं भूपः श्रु त्वरावणकुञ्जरम् / पारुह्य निर्गतः कतुं युद्धमिन्द्रोऽपि संमुखम् // 336 / / रथीव रथिना सार्द्ध तूणीव तूणीना समम् / खड्गीव खड्गिना सार्द्ध युद्ध कतु प्रवर्तितः / / 337|| खड़गेन मालिना शक्र आहतो निर्दयं तदा / यदा मूर्छामवाप्योाँ पपात शुष्कवृक्षवत् / / 338|| उत्थायेन्द्रः सरुग बार्ट कुन्तेन मालिनं तथा / जघान हृदये प्राप पञ्चत्वं क्षणतो यथा // 336 // मालिनं विहतं श्रु त्वा शक्रेण समराङ्गणे | सुमाली समगादिन्द्रं निहन्तु (स्व) स्थानतस्तदा // 340 // सुमाल्यपि रणं कुर्वन् इन्द्रेण सह सङ्गरे / अशक्तो वैरिणं हन्तु नंष्ट्वा स्वपुरमीयिवान् / / 341 // एवं निर्जित्य निःशेषान् वैरिणः समराङ्गणे / वासवः कुरुते राज्यं स्वपुरे त्रिदशेशवत् // 342 //