________________ 144 .. शत्रुञ्जय-कल्पवृत्तो ១១១១១១១១១ង១១ទងងងងង ១០០០ង១១១១០០១១១០០០០០១០០០០០០០៩១ aaaaaaanabG00HODAI आरुह्य पुण्डरीकाद्रि स्नात्रपूजे जिनेशितुः / कृत्वा ध्वजपताकाया दानं चक्रे जिनालये / / 221 // आरात्रिकोऽद्यमङ्गल-दीपावर्ति छिदे तदा / कृत्वा चक्रे नृपो भाव-स्तुतिं स्तोत्रविधानतः (1) / / 222 // नाभेयपादुके पुष्पैः पूजयित्वा नरेश्वरः / अक्षतैर्वर्द्धयामास तदा राजादनीं मुदा // 223 / / अन्येषु जिनगेहेषु पूजयित्वाऽर्हतो मुदा / भूपालो वारिकामत्र दीनादवाहयत्तदा // 224 // सिद्धाद्रावादिदेवस्य प्रासादं विपुलं तदा / कारयामास कल्याण-सुखायाऽवनिनायकः // 225 / / प्रतिलाभ्य गुरून भक्त्या नत्वा च मेदनीपतिः / धर्मोपदेशनां धर्म-सूरिपार्श्वेऽशृणोदिति // 226 // यतः-'जं लहइ अन्नतित्थे चरणेन तवेण बंभचेरेण / तं लहइ पयत्तेण सित्तञ्जगिरिम्मि संपत्तो (निवसंतो) // 1 // जं कोडीए पुण्णं कामियाहारभोइया जे उ / तं लहइ तत्थ पुण्णं एगोववासेण सित्तजे // 2 // जो पडिमं चेइहरे सित्त जगिरिस्स मत्थए कुणइ / भोलण भरहवासं वसइ सग्गे निरुवसग्गे // 3 // जो पुण तवं च तप्पइ उदृभूओ इक्वपाय निक्कंपो / सित्तजे चडिऊणं होइ सुरिंदो नरिंदो वा // 4 // छत्तं ज्झयं पडागं चामरभिंगारन्हवण कलसा य / बलिघालं सित्त'जे दितो विजाहरो होइ // 5 // नवकार-पोरिसीए पुरिमड्ढेकासणं च आयामे / पुंडरीअं च सरंतो फलकंखी कुणइ अभत? // 6 // छट्टट्ठम-दसमदुवालसाई मासद्धमासखमणाई / तिगरणसुद्धो लहइ सित्तजं संभरंतो उ // 7 // ' इत्यादि / भूपो दशरथः पुष्पैः प्रवरैर्दिवसोदये / प्रपूज्योत्तताराद्रः सिद्धात् सङ्घसमन्वितः // 227 // जिमयित्वाऽखिलं सङ्घ परिधाप्याम्बरैवरैः / भूपश्चलन ययौ चन्द्र-प्रभाभिधे च पत्तने // 228 // तत्र चन्द्रप्रभं देवं पूजयित्वाऽतिविस्तरात् / प्रासादं कारयामास चन्द्रप्रभजिनेशितुः // 226 / / सीता सतीशिरोरत्नं प्रासादमपरं पुनः / कारयित्वा तदा चन्द्र-प्रभविम्ब न्यवीविशत् // 230 // ततो रैवतके नेमि नत्वा चाभ्ययं भूधवः / तत् सम कारयामास शम्भुपर्वतसोदरम् // 231 / / कैकेयी वरटक्ष्माध्र गत्वा नत्वा जिनेश्वरम् / प्रासादमादिदेवस्य कारयामास रैव्ययात् // 232 / / रामेण वरटे शैले कारिते शान्तिमन्दिरे / न्यबीविशन्जिनं शान्ति महामहःपुरस्सरम् / / 233 // ढङ्कशैलान्तिके ढङ्ग-पर्यां श्रीऋषभप्रभोः / बिम्ब न्यवीविशद्रामः प्रासादे कारिते स्वयम् // 234 // वल्लभ्यां पुरि सर्वज्ञ-गेहे निष्पादिते स्वयम् / सुप्रभा शान्तिबिम्बं तु न्यवीविशद्वरोत्सवम् // 23 // काम्पील्ये नगरे राम ऋषभस्य जिनेशितुः / लक्ष्मणो वामनस्थल्यां प्रासादं च वरं व्यधात् / / 236 / / रामादिभिः सुतैमण्ड-लीकै मण्डलादिभिः / शत्रुञ्जयादितीथेषु प्रासादाः कारिता वराः // 237 // एवं दशरथो यात्रां कृत्वा तीर्थेषु भूरिषु / समहं स्वपुरीमागात् श्रीसङ्घ विससर्ज च // 238 // भवोद्विग्नोऽन्यदा भूपो रामादिनन्दनान् समान् / आकार्य राज्यमात्मीयं रामाय ददते यदा // 23 // कैकेयी कपटाऽभ्येत्य तदा पत्युः पुरो जगौ / तव पावें वरौ द्वौ तु विद्य ते मम सम्प्रति // 240 // रणे पके रथो मग्नो मयाऽकर्षि यदा पते ! / तदोक्त भवता राज्यं तव पुत्राय दास्यते // 241 // रोगे समागते प्रोक्त भवतेति वरो वरः / याच्यतां तु मयेत्युक्त याचिष्येऽवप्सरे खलु // 242 // यतः-"प्रायः पुमांसः सरलस्वभावा, रण्डास्तु कौटिल्यकलाकरण्डाः / ताताद्ययाचे कथमन्यथाऽस्मिन् , काले वरं ककेयसम्भवेयम् // 1 // "