________________ तत्वसारं यातो यः प्रथमां भूमि सोऽष्ट कृत्वा तथा व्रजेत् / एकैकं हीयमानेन शेषभूमि प्रयान्ति च // 22 // अथ तिर्यग्गतिः कथ्यते / तथाहि-तिरश्चां भेदमाह-स्थावर-त्रसभेदाद द्विविधास्तियश्चः / तन्मध्ये स्थावराः पञ्चप्रकाराः-पृथ्वीकायाप्काय तेजस्काय-वायुकाय-वनस्पतिकायाः सूक्ष्म-बादरैकेन्द्रियाः। प्रसास्तु द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय पञ्चेन्द्रिय-संज्यसंज्ञि-पर्याप्तापर्याप्ताश्च सर्वे तिर्यञ्च एंव। पञ्चस्थावराणां संस्थानानि मसूरिका-कुशाग्रस्थबिन्दु-सूचि-पताकाकाराणि पृथिव्यप्तेजोवातकायिकानां चतम / वनस्पतिकायिकानां चानेकविध संस्थानम् / तथा सानामपि संस्थानमागमानुसारेण ज्ञातव्यम् / तेषां तिरश्चामायुरुत्कृष्टं पल्यत्रयम्, जघन्यमन्तर्मुहूर्तम् / उत्सेधस्तेषामुत्कृष्टः क्रोशत्रयप्रमाणम् / रज्ज्वेक मध्ये तिर्यग्लोकः क्षेत्रमस्ति / स्त्री-पुन्नपुंसकलिङ्गानि भवन्ति / चतुर्विषार्तध्यानेनोत्पद्यन्ते तियनश्चेति तियंग्गतिः। अथ मनुष्यगतिरुच्यते। तद्यथा-सार्धद्वीपवयमध्ये मानुषोत्तरपर्वतपर्यन्तक्षेत्रे भवन्ति जो जीव पहिली भूमिमें जाता है, वह उत्कृष्टरूपसे आठ बार वहां जाता है / पुनः एक-एक हीयमान बारसे शेष भूमियोंको जाता है // 22 // . अब तिर्यग्गतिका वर्णन करते हैं। पहिले तिर्यंचोंके भेद कहते हैं-तिर्यंच त्रस और स्थावरके भेदसे दो प्रकारके हैं। उनमें स्थावर जीव पांच प्रकारके हैं-पथ्वीकाय, अप्काय, स्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय / ये सभी एकेन्द्रिय स्थावर जीव सूक्ष्म भी होते हैं और बादर भी होते हैं / त्रसजीव द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रियके भेदसे चार प्रकारके होते हैं। पंचेन्द्रिय जीव संज्ञी और असंज्ञीके भेदसे दो प्रकारके होते हैं / पुनः ये सभी तिर्यंच जीव पर्याप्तक भी होते हैं और अपर्याप्तक भी होते हैं। पांच प्रकारके स्थावरोंमेंसे पृथ्वीकायका संस्थान मसूरके समान होता है, अप्कायका संस्थान कुशाके अग्रभागपर स्थित जल-बिन्दुके समान होता है, तेजस्कायका संस्थान सूची (सूई) के समान होता है और वायुकायका संस्थान पताका (ध्वजा) के आकारका होता है / वनस्पतिकायिकजीवोंका संस्थान अनेक प्रकारका होता है / तथा त्रस जीवोंका संस्थान भी आगमके अनुसार जानना चाहिए। भोगभूमिमें पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंकी उत्कृष्ट आयु तीन पल्यप्रमाण होती है और कर्मभूमिके तियं चोंकी जघन्य आयु अन्तर्मुहर्त-प्रमाण होती है / उक्त तिर्यंचोंके शरीरकी उत्कृष्ट ऊंचाई तीन कोश प्रमाण होती है। एक राजुके मध्य में तिर्यग्-लोक क्षेत्र है। तिर्यंच स्त्री, पुरुष और नपुंसक तीनों लिंगवाले होते हैं। चार प्रकारके आर्तध्यानसे मरकर जीव तिथंच गतिमें उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार तिर्यग्गतिका वर्णन किया / अब मनुष्यगतिका वर्णन करते हैं / यथा-अढाई द्वीपके मध्य मानुषोत्तर पर्वततकके क्षेत्रमें मनुष्य उत्पन्न होते हैं। वे आर्य, म्लेच्छ, भोगभूमिज और कुभोगभूमिजके भेदसे चार प्रकारके होते हैं। उनमें आर्य मनुष्य स्त्री, पुरुष और नपुंसक तीनों लिंगवाले होते हैं। तथा वे पर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त भी होते हैं। इसी प्रकार म्लेच्छखण्डमें उत्पन्न हुए मनुष्य भी जानना चाहिए।