________________ अथ द्वितीयं पर्व श्रीशुद्धभावोऽमरसिंहकेऽस्मिन् श्रीमज्जिनेन्द्राङ्घ्रिपयोजभक्ते / सल्लक्षणे पुण्यपदार्थयुक्ते एवंविषस्तिष्ठतु मुक्तिबोऽयम् // . -आशीर्वावः। अथासन्नभव्येन केचित्तत्वं ध्यातुकामेन युक्तिः पृष्टा, भगवान् श्रीदेवसेनदेवाल्य इति मूलगाथा-जं अवियप्पं तच्चं तं सारं सुक्खकारणं तं च / .. तं णाऊण विसुद्धं झायहु होऊण णिग्गंथा // 9 // .. संस्कृतच्छाया-यवविकल्पं तत्त्वं तत्सारो मोक्षकारणं तच्च। . ___ तज्ज्ञात्वा विशुद्धं ध्यायत भूत्वा निग्रन्थाः॥९॥ टीका-इत्यवतारिकां कृत्वा वृत्तिकारः पवखण्डनारूपेण व्याल्यानं करोति तद्यथा'जं अवियप्पं तच्चं तं सारं मोक्खकारणं तं च यत् पूर्वोक्तं स्वगततत्त्वं तत्सिद्धान्तसारभूतं, तदेव मोक्षस्य कारणम् / यतः स्वगततत्त्वे सति परम्परया मोक्षो भवतीति प्रसिद्धः / ते णाऊण विसुदं . सायहु होऊण णिग्गंथा' तत्तत्त्वं निजात्मस्वरूपं विशेषेण शुद्धं विशुद्ध ज्ञात्वा भो भव्याः यदि श्रीमज्जिनेन्द्रदेवके चरण-कमलोंके भक्त, उत्तम लक्षण वाले और पुण्य-पदार्थसे युक्त (पुण्यशाली) इस अमरसिंहके भीतर यह उपर्युक्त प्रकारका श्रीयुक्त शुद्धभाव सदा काल विराजमान रहे। आगै शुद्धतत्त्वकी महिमा कहैं हैं भा०व०-जो अविकल्प कल्पनाजाल-रहित ऐसा तत्त्व जो है सो ही सार है। बहुरि सो ही मोक्षका कारण है। सो विशुद्ध उज्ज्वल तत्त्वकू जाणि करि अर निर्गन्थ होय करि ध्यान करहु // 9 // ___अब तत्त्वका ध्यान करनेके इच्छुक किसी निकट भव्यके द्वारा ध्यान करनेकी युक्ति पूछने पर भगवान् श्रीदेवसेनदेवने कहा___ अन्वयार्थ-(ज) जो (अवियप्पं) निर्विकल्प (तच्च) तत्त्व है, (तं) वही (सारं) सार हैप्रयोजभूत है / (तं च) और वही (मोक्ख कारणं) मोक्षका कारण है / (तं) उस (विशुद्ध) विशुद्ध तत्त्वको (णाऊण) जानकर (णिगंथो) निर्ग्रन्थ (होऊण) होकर (झायहु) ध्यान करो। ___. टीकार्थ-उक्त प्रकारसे गाथाका अवतरण कर टीकाकार उसका व्याख्यान करते हैं यथा'जं अवियप्पं तच्चं' इत्यादि, जो पूर्वोक्त स्वगत तत्त्व है, वह सर्व सिद्धान्तका सारभूत है, और मोक्षका कारण है, क्योंकि स्वगत तत्त्वके प्राप्त होने पर परम्परासे मोक्ष प्राप्त होता है, यह प्रसिद्ध है / 'तं णाऊण विसुद्ध' इत्यादि, वह तत्त्व निजात्मस्वरूप है और विशेष रूपसे शुद्ध अर्थात्