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________________ 25 तत्त्वसार .. अथ हे भगवन्, तेषां पञ्चपरमेष्ठिनां तत्वचिन्तनात कि पल भवतीति पृष्टे परिहारमाहमूलगाथा-तेसिं अक्खररूवं भवियमणुस्साण झायमाणाणं / बज्झइ पुण्ण बहुसो परंपराए हवे मोक्खो // 4 // संस्कृतच्छाया-तेषां अक्षररूपं भव्यमनुष्याणां ध्यायमानानाम् / बध्यते पुण्यं बहुशः परम्परया भवेन्मोक्षः // 4 // टीका-इत्यस्या गाथायाः अवतारिका। तेषां पञ्चानामर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यासाधूनां परमेष्ठिवाचकानामक्षरात्मकं बीजाक्षरं पदस्थध्यानवाचकं मन्त्ररूपं ध्यायमानानां मनष्याणां भव्यात्मनां तत्पुण्यं बध्यते बहुशो बहुप्रकारं येन पुण्येन परम्परया मोक्षो भवेत् / तथाहि-स मोक्षो द्विविधः-भावमोक्षो द्रव्यमोक्षश्चेति / तत्र निर्विकार-निर्विकल्प-निरखनः शुख-सुखस्वात्मो भा० व० तेषां कहिए. तिनि अरहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय साधू पंच परमेष्ठीनिके वाचक अक्षरात्मक बीजाक्षर पदस्थ ध्यान वाचक मंत्ररूप ध्यान करता है भव्य मनुष्य तिनिकै .बहुत पुण्य जो है सो बंधै है, अर परंपरा करि मोक्ष होय है // 4 // आर्गे स्वगततत्त्वकू कहै हैं पंचपरमेष्ठी 'तत्त्व' हैं ऐसा निर्णय कर आत-रौद्ररूप दुनिसे बचनेके लिए और संसारकी स्थितिको छेदनेके लिए निकट भव्य जीवोंको उपादेयबुद्धिसे तत्त्वका वारंवार चिन्तवन करना चाहिए, यह गाथाका भावार्थ है // 3 // अब, हे भगवन् ! उन पंच परमेष्ठियोंके तत्त्व चिन्तवन करनेसे क्या फल होता है ? ऐसा पूछनेपर ग्रन्थकार उत्तर देते हैं अन्वयार्थ-(तेसि) उन पंच परमेष्ठियोंके (अक्खरख्व) वाचक अक्षररूप मंत्रोंको (झायमाणाणं) ध्यान करनेवाले (भवियमणुस्साण) भव्यजनोंके (बहुसो) बहुत-सा (पुण्णं) पुण्य (बज्झइ) बंधता है / (परंपराए) और परम्परासे (मोक्खो) मोक्ष (हवे) प्राप्त होता है // 4 // . टीकार्थ-इस गाथाकी अवतारिका (उत्थानिका) ऊपर कही गई है। उन अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इन पंच परमेष्ठियों वाचक अक्षरात्मक बीजाक्षरोंका एवं पदस्थध्यानके वाचक मंत्ररूप अक्षरोंका ध्यान करनेवाले भव्यात्मा मनुष्योंके वह बहुत प्रकारका पुण्यबन्ध होता है, जिस पुण्यके द्वारा परम्परासे मोक्ष की प्राप्ति होतो है / वह मोक्ष दो प्रकारका है--भावमोक्ष और द्रव्यमोक्ष / उनमें निर्विकार, निर्विकल्प, निरंजन, शुद्ध, बुद्ध अपने आत्मस्वरूपकी उपलब्धि होना भावमोक्ष है / सभी द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्मोंके सर्वथा क्षयसे आत्माका
SR No.004346
Book TitleTattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Siddhantshastri
PublisherSatshrut Seva Sadhna Kendra
Publication Year1981
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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