________________ तत्त्वसार टाटानगर, इन्दौर, देवलाली, बैंगलोर, हम्पी (विजयनगर), हैदराबाद, कारंजा आदि स्थानोंपर हुई है। संस्था, गच्छ-मत-सम्प्रदायकी संकीर्णतामें उलझे बिना वीतराग महर्षियोंके स्वपरकल्याणकारी उपदेशको जनता तक पहुंचानेमें प्रयत्नशील है। प्रस्तुत प्रकाशन श्रीमद् राजचन्द्रजीने 'उपदेश नोंध-१५ पृ० 669' पर 'श्रीसत्श्रुत'-शीर्षकके अन्तर्गत अनेक ग्रन्थोंका उल्लेख किया है, और उन ग्रन्थोंका इन्द्रियनिग्रहपूर्वक अभ्यास करनेकी प्रेरणा दी है। उपरोक्त स्थानपर निर्दिष्ट प्रायः सभी ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं, और यह 'तत्त्वसार' ग्रन्थ भी सन् 1937 में स्व० जैनधर्मभूषण ब्र० सीतलप्रसादजीकृत संक्षिप्त हिन्दी टीका सहित दि० जैन पुस्तकालय, सूरतकी ओरसे प्रगट हुआ था, परन्तु वर्तमानमें कहीं भी उपलब्ध नहीं है। ... प्रस्तुत ग्रन्थ एक अति उत्तम आध्यात्मिक ग्रन्थ है, जिसमें जैन दृष्टिसे तत्त्वोंका संक्षिप्त स्वरूप बताकर समस्त साधकोंको परम उपकारी ऐसे आत्मज्ञान और ध्यानमार्गकी आराधनाकी प्रेरणा व शिक्ष दी गई है। सभी अध्यात्मप्रेमी मुमुक्षुओंके लिए यह ग्रन्थ स्वाध्याय-ध्यान-तत्त्वाभ्यासमें अत्यन्त उपकारी जानकर और वर्तमानमें अनुपलब्ध होनेसे इसका प्रकाशन किया गया है। जैन समाजके लब्धप्रतिष्ठ मूर्धन्य विद्वान् श्रीमान् पं० हीरालालजी सिद्धान्तशास्त्रीसे संस्थाकी ग्रन्थ-प्रकाशन-समितिके सदस्योंकी भेंट कुंभोज-बाहुबली एवं थुबौनजी तीर्थोंमें हुई और . समितिने अपना सुझाव पंडितजीके समक्ष रक्खा। उन्होंने इस सम्बन्धमें अनुकूल प्रत्युत्तर दिया और बहुत सहज भावसे ग्रन्थके सम्पादनका कार्य संभालनेकी स्वीकृति दे दी। मात्र पाँच-छह महीनोंमें ही उन्होंने इस कठिन ग्रन्थका जिस प्रकार सुचारुरुपसे और वैज्ञानिक ढंगसे सम्पादन कर दिया है, इससे पाठकवर्गको उनके श्रुतप्रेम, कर्तव्यनिष्ठा और विशाल अध्ययनकी सहजमें प्रतीति हो जाती है। आपके सर्वांगीण सहयोगके लिए हम आपका अत्यन्त आभार प्रगट करते हैं, और हमें आशा ही नहीं, किन्तु विश्वास है कि आप जिनवाणीकी अविरल सेवा करके स्वपरकल्याणमें लगे रहेंगे एवं अन्य नूतन पंडित-समाजको भी श्रुतसेवाकी प्रेरणा देते रहेंगे। इस प्रकाशनके पुफरीडिंग आदिका सब कार्य श्रीमान् पंडित बाबूलाल सिद्धसेन जैन, अहमदाबाद वालोंने सत्श्रुतभक्तिसे प्रेरित होकर किया है। इस विशिष्ट सहयोगके लिए हम उनके आभारी हैं। ग्रन्थका सुन्दर और सावधानीपूर्वक मुद्रणका कार्य श्री बाबूलालजी फागुल्ल, महावीर प्रेस, वाराणसीने तत्परतासे किया है, अतः वे धन्यवादके पात्र हैं। अन्तमें, अभ्यासी और साधकसमुदाय इस उत्तम ग्रन्थका अध्ययन-अध्यापन करके स्वपरकल्याणमें लगेंगे ऐसी भावनासहित, अध्यात्मसाधकोंकी सेवामें तत्पर ग्रन्थ-प्रकाशन-समिति, श्री सत्श्रुत सेवा-साधना केन्द्र