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________________ तत्त्वसार इत्यादि मिथ्यात्वगुणस्थानम् 1 / ... अनन्तानुबन्धिकोष-मान-माया-लोभान्यतरोदएण प्रथमोपशमसम्यक्त्वात्पतितो मिथ्यात्वं नाद्यापि गच्छतीत्यन्तरालवर्ती सासादनगुणस्थानम् / उक्तं च गोम्मटसारे सम्मत्तरयणपव्वयसिहरादो मिच्छ भूमिसमभिमुहो। ____णासियसम्मत्तो सो सासणणामो मुणेदव्वो // 11 // दर्शनमोहनीयमिधप्रकृत्युदयेन मिश्रभावं दधि-गुडमिश्रभाववत् श्रद्धत्ते सम्यग्मिथ्यात्वगुणस्थानम् 3 / सो संजमंण गिण्हदि देसजमं वा ण बंधदे आउं। सम्म वा मिच्छं वा पडिवज्जिय मरदि णियमेण // 12 // यत्र सम्यक्त्वभावे मिथ्यात्वभावे वा पूर्वमायुर्बद्धं तत्रैव गुणे म्रियते नियमात् / अनाद्यनन्तानुबन्धिकोष-मान-माया-लोभ-मिथ्यात्वप्रकृति - सम्यक्त्वप्रकृति- सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृतीति सप्तप्रकृतीनामुपशमाद् उपशमसम्यक्त्वं भवति / सम्यक्त्वप्रकृत्युदयात् क्षयोपशमसम्यक्त्वं भवति षण्णामुदयाभावाच्च / सप्तानां प्रकृतीनां क्षयात् क्षायिकसम्यक्त्वं स्यात् / इति द्वितीयकषायाप्रत्याख्यानचतुष्कोवयात्संयमाभावावसंयतसम्यग्दृष्टिः स्वीकृतसर्वज्ञवीतराइत्यादि प्रकारसे मिथ्यात्व गुणस्थानका स्वरूप जानना चाहिए। अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया और लोभ कषायमेंसे किसी एकके उदयसे प्रथमोपशम सम्यक्त्वसे पंतित हुआ जीव जबतक मिथ्यात्वको प्राप्त नहीं होता है, तबतककी अन्तरालवर्ती अवस्थावाला वह जीव सासादन गुणस्थानी है। जैसा कि गोम्मटसारमें कहा है सम्यग्दर्शन रत्नरूप पर्वतकी शिखरसे गिरा हुआ और मिथ्यात्वरूपी भूमिके सम्मुख हुआ, तथा जिसका सम्यक्त्व नष्ट हो चुका है, ऐसा जीव सासादन नामक दूसरे गुणस्थानवाला जानना चाहिए // 11 // ...दर्शन मोहनीयकी मिश्र प्रकृतिके उदयसे दही-गुड़की मिश्रताके समान जो सम्यक्त्व और यिथ्यात्वको मिश्र अवस्थाको धारण करता है, वह मिश्रगुणस्थानवाला जीव है 3 / यह मिश्र गुणस्थानी जीव न सकल संयमको ग्रहण करता है, न देशसंयमको ही धारण करता है और न आयुकर्मको ही बांधता है। किन्तु सम्यक्त्व या मिथ्यात्व जिस दशामें पहिले आयुको बांधा है, उसी सम्यक्त्व या मिथ्यात्व गुणस्थानको नियमसे प्राप्त होकर मरता है // 12 // जिस सम्यक्त्वभावमें अथवा मिथ्यात्वभावमें पहिले आयुको बांधा है उसी गुणस्थानमें .. जाकर नियमसे मरता है। अनादिकालसे संलग्न अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ कषाय, मिथ्यात्वप्रकृति सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृति इन सात प्रकृतियोंके उपशमसे उपशमसम्यक्त्व होता है। सम्यक्त्वप्रकृतिके उदयसे और शेष छह प्रकृतियोंके उदयाभावसे क्षयोपशम सम्यक्त्व होता है / सातों ही प्रकृतियोंके क्षयसे क्षायिक सम्यक्त्व होता है। __.. दूसरी अप्रत्याख्यानावरण कषाय चतुष्कके उदयसे संयम न होनेके कारण वह सम्यग्दृष्टि
SR No.004346
Book TitleTattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Siddhantshastri
PublisherSatshrut Seva Sadhna Kendra
Publication Year1981
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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