________________ प्रस्तावना 27 गाथा 11, 15, 41, 45, 53, 72 और 74 की वचनिकाको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि उसके सामने तत्त्वसारकी संस्कृत टीका रही हैं, जिसके आधार पर उन्होंने उक्त गाथाओं पर अधिक विवेचन किया है। गाथाका अर्थ करनेके पूर्व दी गई उत्थानिकाओंसे भी उक्त बात सिद्ध होती है। उक्त गाथाओंके आधार पर किये गये विवेचनके अतिरिक्त गाथा 72 की वचनिकामें दिये गये 'संसार-भीरु अमरसिंह, तू भी सिद्धनिकूँ नमस्कार करि' इस वाक्यसे तो स्पष्टरूपसे सिद्ध है कि उनके सामने कमलकीति-रचित संस्कृत टीका थी। क्योंकि उक्त वाक्य संस्कृत टीकाके 'भो संसारभीरो अमरसिंह, त्वमपि नमस्कुरु, इस वाक्यका शब्दशः अनुवाद है। दूसरे, अमरसिंहके नामका उल्लेख टीकाके सिवाय मूल गाथाओंमें कहींभी नहीं है। टीकाकारने ही आरम्भसे लेकर अन्ततक अनेक बार अमरसिंहके नाम का उल्लेख किया है। -हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री