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________________ षष्ठ पर्व सर्वज्ञ ज्ञानसंसिद्धिस्तवास्तु. सुखदायिनी। भो भव्यामरसिंहाल्य सर्वसाधुजनेप्सिता॥ (इत्याशीर्वावः) अथ केवलज्ञानोद्धवानन्तरं कथम्भूतो भवतीति प्रतिपादयन्त्यने सूत्रकृतःमूलगाथा-तिहुवणपुज्जो होउं खविउ सेसाणि कम्मजालाणि / जायइ अभूदपुन्वो लोयग्गणिवासिओ सिद्धो // 67 // संस्कृतच्छाया-त्रिभवनपूज्यो भूत्वा क्षपित्य शेषाणि कर्मजालानि / . जायतेऽभूतपूर्वो लोकापनिवासी सिद्धः // 67 // टीका-तिहवणपुज्जो होउ! इत्यादि व्याक्रियते वृत्तिकृता यतिना-त्रिभुवनपूज्यो भूत्वा त्रयाणां भुवनानां समाहारस्त्रिभुवनम्, तेन पूजितो भूत्वा / पश्चात् किं कृत्वा ? 'खविउ सेसाणि कम्मजालाणि' क्षपित्वा / कानि ? कर्मजालानि कर्मसमहानि। कथम्भूतानि ? शेषाणि समस्तानि अघातिकर्माण्युद्धरितानि वा। 'जायइ अभूदपुग्यो' जायते समुत्पद्यते। कयम्भूतो - 'हे भव्य अमरसिंह ! सर्वसाधुजनोंको अभीष्ट और अक्षय सुख देनेवाली सर्वज्ञ-ज्ञानकी संसिद्धि तेरे होवे // 1 // (इति आशीर्वादः) बहुरि कहा होय ? सो ही कहें है...भा० व०-तीन भुवन जो तीन लोक, ताके पूज्य होय करि, अर बाकीके च्यारि अघातिया आयु नाम गोत्र वेदनीय जे समस्त कर्म-जाल तिनकू नष्ट करि सिद्ध होय है / कैसा सिद्ध होय है ? पूर्वं ऐसा कदे भी नांहीं भया। बहुरि कैसा होय है ? लोकका अग्र भाग विर्षे है निवास जिनका ऐसा सिद्ध होय है // 67 // अब केवलज्ञानके उत्पन्न होनेके पश्चात् जीव कैसा हो जाता है, यह सूत्रकार आगे प्रतिपादन करते हैं अन्वयार्थ-(तिहुवणपुज्जो) अरहन्त अवस्थामें तीन भुवनके जीवोंका पूज्य होकर, पुनः (सेसाणि) शेष (कम्मजालाणि) कर्मजालोंको (खविउ) क्षय करके (अभूदपुल्वो) अभूतपूर्व (लोयग्गणिवासिओ) लोकारका निवासी (सिद्धो) सिद्ध परमात्मा (जायइ) हो जाता है। टीकार्य–'तिहुवणपुज्जो होउं' इत्यादि गाथाका टीकाकार मुनि अर्थ व्याख्यान करते हैं-ऊर्ध्व मध्य और अधोलोक इन तीनों भुवनोंके समाहारको त्रिभुवन कहते हैं। ऐसे त्रिभुवनसे पूजित होकर। 17
SR No.004346
Book TitleTattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Siddhantshastri
PublisherSatshrut Seva Sadhna Kendra
Publication Year1981
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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