________________ 124 तत्त्वसार विकल्पात्मकं न रमते न बासक्तं भवति / केषु ? पन्नेन्द्रियविषयेषु / कस्य मनः ? 'जोइस्स' योगिनः परमयोगिनः / कथम्भूतस्य ? 'उवलखसुद्धतच्चस्स' उपलब्ध प्राप्तं शुद्ध रागादिरहितं तत्त्वस्वरूपं येनासो उपलब्धशुद्धतत्त्वः, तस्य / पुनरपि किं करोति तन्मनः ? 'एकोहवइ णिरासो' एकीभवति, नानेकीभवति-एकीभवति / कथम्भूतं सन् ? "णिरासो' निराशं निर्गता विनष्टा विषयाणामाशा / अथवेह-लोकाशा परलोकाशा धनाशा जीविताशा वा यस्मात्तन्निराशं निर्गतदुराशम् / पश्चात् किं करोति तन्मनः ? 'मरइ पुणो' पुननिंयते विनाशं गच्छति / केन कृत्वा ? 'माणसत्येण' ध्यानशस्त्रेण, परमात्मध्यानमेव शस्त्रमायुषः ध्यानशस्त्रं तेन / भव्यजनैरिति मत्वा परगततत्त्व-स्वगततत्त्वस्मरणलक्षणे ध्यानेऽभ्यासः कर्तव्य इति भावार्थः।।६३॥ प्रश्न-किनमें आसक्त नहीं होता है ? उत्तर-पांचों इन्द्रियोंके विषयोंमें आसक्त नहीं होता है / प्रश्न-किसका मन आसक्त नहीं होता है ? उत्तर-'जोइस्स' परमध्यानी योगीका मन आसक्त नहीं होता है / प्रश्न-कैसे योगीका मन आसक्त नहीं होता ? उत्तर-'उवलद्धसुद्धतच्चस्स' अर्थात् जिसने रागादि-रहित शुद्ध तत्त्वका स्वरूप उपलब्ध कर लिया है, उस योगीका मन आसक्त नहीं होता। प्रश्न-तो फिर उसका मन क्या करता है ? उत्तर-'एकीहवइ णिरासो' अर्थात् वह आत्माके साथ एक हो जाता है, फिर वह अनेक . विकल्परूप नहीं रहता। प्रश्न-कैसा होता हुआ वह एक हो जाता है ? उत्तर-णिरासो' निराश होकर / जिसके विषयोंकी आशा निकल गई है, नष्ट हो गई है। अथवा जिसमेंसे इस लोककी आशा, परलोककी आशा, धनकी आशा और जीवनकी आशा निकल गई हैं अर्थात् सभी प्रकारको दुराशाएँ नष्ट हो गई हैं। प्रश्न-पश्चात् निराश होनेपर वह मन क्या करता है ? उत्तर-'मरइ पुणो' अर्थात् फिर वह मन मर जाता है। प्रश्न-किसके द्वारा मर जाता है ? उत्तर-'झाणसत्थेण' अर्थात् ध्यानरूपी शस्त्रसे मर जाता है-विनाशको प्राप्त हो जाता है / चंचल मनके विनाशके लिए परमात्माका ध्यान ही शस्त्र है, आयुध है। ऐसा जानकर भव्यजनोंको परगत-तत्त्व और स्वगत तत्त्वके स्मरणरूप ध्यानका अभ्यास करना चाहिए / यह इस गाथाका भावार्थ है // 63 // ,