________________ तत्वसार अथ आत्मतत्त्वे दृष्टे सति योगिनां कि भवतीति प्रतिपादयतिमूलगाथा-दिह्र विमलसहावे णियतच्चे इंदियत्थपरिचत्ते। ___जायइ जोइस्स फुडं अमाणुसत्तं खणद्धेण // 42 // संस्कृतच्छाया-दृष्टे विमलस्वभावे निजतत्त्वे इन्द्रियार्थपरित्यक्ते। जायते योगिनः स्फुटममानुषत्वं क्षणार्धन // 42 // टीका-विट्ठ विमलसहावे' इत्यादि, व्याख्यानं क्रियते-'वि? विमलसहावे णियतच्चे इंवियत्थपरिचत्ते' दृष्टे स्वसंवेदनशानदृष्टया दृष्टे सति / कस्मि / निजतस्वे स्वशुद्धात्मस्वरूपे / पुनः कथम्भूते ? विमलस्वभावे, विगतानि विनष्टानि कर्माण्येव मलानि.यस्मात्तद विमलं विमलमेव स्वभावो यस्य तद्विमलस्वभावम्, तस्मिन् विमलस्वभावे / पुनरपि कथम्भूते निजतत्त्वे ? इन्द्रियार्थपरित्यक्ते स्पर्शनरसन-प्राण-चक्षुः-धोत्राणीति पञ्चेन्द्रियाणि, स्पर्श-रस-गन्ध-वर्ण-शब्दास्तदर्था आर्गे कहै हैं-योगीकों निजतत्त्वकू देखता संता सर्वज्ञपणां होय है भा० व०-निज तत्त्व शुद्धात्मा स्वरूप जो है सो देखता संता जोगीनिके प्रगट अधीक्षणकरि अमानुषत्व जो देवत्वपणां परमदेवपणां व सर्वज्ञत्वपनां होय है। निर्मल स्वभाव अर इन्द्रियअर्थ जो इंद्रिय-विषयकरि रहित ऐसा होय है // 42 // // 2 // अब सूत्रकार आत्मतत्त्वके दिखाई देनेपर योगियोंके क्या होता है, यह बतलाते हैं अन्वयार्थ (विमलसहावे) निर्मल स्वभाववाले, (इंदियत्थपरिचत्त) इन्द्रियोंके विषयोंसे रहित (णियतच्चे) निज आत्मतत्त्वके (दि8) दिखाई देनेपर (खणद्धण) आधे क्षणमें (जोइस्स) योगीके (अमाणुसत्त) अमानुषपना (फुड) स्पष्ट प्रकट (जायइ) हो जाता है / * 'टीकार्थ-'दिद्वे विमलसहावे' इत्यादि गाथाके अर्थका व्याख्यान करते हैं। (दिटे विमलसहावे णियतच्चे इंदियत्थपरिचत्ते' अर्थात् स्वसंवेदनरूप ज्ञानदृष्टिसे देखनेपर। प्रश्न-किसके देखनेपर? उत्तर-स्व-शुद्धात्मस्वरूप निजतत्त्वके देखनेपर। प्रश्न-पुनः वह निजात्मतत्त्व कैसा है ? उत्तर-विमलस्वभाव है। जिसमेंसे कर्मरूप मल विगत या विनष्ट हो गये हैं, उसे विमल कहते हैं / ऐसा विमलरूप स्वभाव जिसका होता है, वह विमलस्वभाव कहलाता है / प्रश्न-फिर भी वह निजतत्त्व कैसा है ? उत्तर-इन्द्रियोंके विषयोंसे रहित है। इन्द्रियां पांच हैं-स्पर्शन, रसना, प्राण, चक्षु और श्रोत्र / इनके विषय क्रमशः स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण और शब्द हैं। वह शुद्ध निजात्मतत्त्व इन पांचों इन्द्रियोंके विषयोंसे रहित है।