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________________ 76 तत्वसार योगाः परिस्पन्दरूपा निश्चलत्वं गच्छन्तीत्यर्थः। 'तो पयह अप्पाणं अप्पा परमप्पयसरूवं तदा तस्य यतः साधोरयमात्माऽन्तरात्मा परमात्मस्वरूपं परमब्रह्मरूपमात्मानं स्वयं प्रकटयति प्रकटीभवतीत्यर्थः / ततः स एव निर्विकारः स्वशुद्धात्मोपादेय इति भावार्थः // 31 // अथानन्तरमुपसंहाररूपेण ध्यानमाहात्म्यं प्रतिपादयतिमूलगाथा--मण-वयण-कायरोहे (बज्झइ) रुज्झइ कम्माण आसवो णूणं / चिर-बद्धं गलइ सयं फलरहियं जाइ जोईणं // 32 // संस्कृतच्छाया-मनोवचनकायरोघे रुध्यति कर्मणामानवो नूनम् / चिर-बद्ध गलति स्वयं फलरहितं याति योगिनाम् // 32 // टीका-'मण-चयण-काय' इत्यादि व्याल्यानं क्रियते--'मण-वयण-कायरोहे' मनोवचनकाये निरोघे सति / तथा हि--कर्मोदयजनितशुभाशुभसंकल्परूपेण चलनं मनः, एवं विधे-मनोव्यापारे आगें मन वचन कायका योगका रोकना होत संतै नवीन कर्मका आगमन रुकै है, असे कहै हैं भा०व०-जोगीश्वरनिकै मन वचन काय निरोध जो है सो होत संतै, सोई कहें हैं कर्मका उदयकरि उत्पन्न भया शुभाशुभ संकल्परूपकरि चलायमान मन, या प्रकार मनका व्यापार कू होत संतै, तैसें ही वचनात्मरूप करि या प्रकार करूं, या प्रकार विकल्परूप वचन, अर मन वचनरूप करि प्रवृत्तिरूप काय इति या प्रकार मन वचन कायनिका व्यापारका रोध होत संत निश्चयकरि कर्मनिका आश्रव है सो रुकै है / अर चिरकालसंचित बांध्या कर्म जातें स्वयमेव ही गले हैं, विनसे हैं। कैसे कोनकी नाई ? पक्या आम्रादिक फलकी नाई। आलम्बनका अभावंतें वीटकातूं पड़े है, तैसे ही मन वचन कायका व्यापारका निरोध होत संतै कर्म झड़ पड़े है, रसदेय खिर जाय है, अर नया बंध नाहीं होय है // 32 // पयडइ अप्पाणं अप्पा परमप्पयसरूवं' तब उस साधुका यह अन्तरात्मा परमात्मस्वरूपसे अर्थात् परमब्रह्मरूपसे अपने आप प्रकट हो जाता है। इसलिए वह निर्विकार अपना शुद्ध आत्मा ही उपादेय है / यह इस गाथाका भावार्थ है // 31 // अब इसके पश्चात् सूत्रकार उपसंहाररूपसे ध्यानका माहात्म्य बतलाते हैं- . अन्वयार्थ-(मण-वयण-कायरोहे) मनवचनकायकी चंचलता रुकनेपर (कम्माण) कर्मोंका (आसवो) आस्रव (णूणं) निश्चयसे (रुज्झइ) रुक जाता है। तब (चिर-बद्ध) चिरकालीन बंधा हुआ कर्म (जोईणं) योगियोंका (सयं) स्वयं (गलइ) गल जाता है और (फलरहियं) फल-रहित (जाइ) हो जाता है। टीकार्य-'मण-वयण-कायरोहे' अर्थात् मन वचन कायके निरोध होनेपर। इसका स्पष्टीकरण यह है-कर्मोदय-जनित शुभाशुभसंकल्परूपसे संचलनको मन कहते हैं / इस प्रकारके मनका
SR No.004346
Book TitleTattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Siddhantshastri
PublisherSatshrut Seva Sadhna Kendra
Publication Year1981
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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