________________ ध्यावर्तकस्य प्रयोजनम्:- मगरको मागम में 14 : साम्सदेनेति साध्यत्वेनैव क साधनत्वेनापि / अनेन च साध्यहेतुदष्टान्ता भासाना मात्वज्युदासर ! •ཚབསྒྲུབ་བར་རྩ་བ་ཉི ད ་ཀྱིསྶ ཞེས་བ་ཡང་། བསྒྲུབ་པར་བྱ་བ་ (ཉིད་ དེགས་' དེ་)ཁོ་ན་ཉིད་ཀྱི《ཚུལ་ང)ཡིན་གྱི། སྒྲུབ་པར་བྱེད་པ་ཉིད་ཀྱིས་ཀྱང་ (वेसर) वैमाजका गा मोक, (A) पERYRARE, 128, माग और पार होय व्या . 105) , 'ईप्सित्र' इत्यनेन च नोक्तमात्रस्यवेत्युक्तं भवति / इच्छयाऽपि व्याप्तः 'पक्षः' / इत्येतच्च परार्थच्चक्षुरादय इत्यत्र दर्थयिष्यामः। ___ ले (SNI) मा मोवा, (केमा वाम ཙམ་ཁ ན་, ཞེས་བརྗོད་བ་མིན་གྱི། འདོད་པས་ཁྱོབ་པ་ཡང་ཕྱོགས་(ཀྱི་ཡན་ ལག་ཏུ་དགོས)ས་, ཞེས་བྱ་སྟེ། འདི་ཡང་ མིག་ལ་སོགས་བ་གཞན་གྱི་ དོན་ཡིན་ཏེ” ཞེས་བྱ་བ་དེར་བསྟན་པར་བྱའོ།། 1) यहां साध्य-निर्देशन काल में हेतु दृष्टान्तादि के आभास धर्म 'पक्ष' होने की शंका यद्यपि असंगत सी प्रतीत होती है, फिर भी साध्य-साधकमाव से चाक्षुषत्वादि हेत्वादि में भी साध्यभाव की प्राप्ति हो सकती है यथा -"यद्यपि चाक्षुषत्वादिहेत्वाभासो हेतुस्थाने प्रयु' क्तो वर्तते, तथापि साध्यासाधकत्वात्साध्य एवासौ परं यः पदार्थः साध्यत्वेन विषयीकृतः साधयाम्येनं हेतुं ते इत्येवंभूतयेच्छया स साध्यः साध्याभिप्रायेण निर्दिष्टः पक्षो भवति / तथा च सति हेतुदृष्टान्ताभासयोः साध्यसाधकत्वेन साध्ययोरपि न पक्षव्यपदेशस्तयोः साधनाभिप्रायेण निर्देशात् / यदा तु हेतुदृष्टान्तयोः पससिद्धयोः साधनान्तरेण सिसाधयिषया निर्देशः क्रियते तदा प्रतिज्ञात्वमभ्युपगम्यते एव / 2) यद्यपि परार्थीनुमाने वचनोक्त एव पक्षः, इह वचनेनानुक्तोऽपि पक्षो भवति सामयॊक्तत्वा त्तस्य” इति अस्य भावार्थः- (द्रष्टव्य-न्या. व. पं. पृ. 45) /