________________ 67 73) किंसाधनमिति ? इह च यदा साध्यतेऽनेनेति साधनं करणाभिधानार्थः साधनशब्दस्तदा पक्षोपलक्षितानि हेतुत्वादिवचनानि साधनम् यतस्तैः करणभूत विवक्षितोऽर्थः परसंताने प्रतिपाद्यते / अपार से म) लगाम लेका , मा གི་ཚེ་, གང་གིས་སྒྲུབ་བར་བྱེད་པ་ནི, སྒྲུབ་བ་སྟེ། སྒྲུབ་བྱེད་ཀྱི་སྒྲ་,1 རྒྱུ་ མཚན་མངོན་བར་བརྗོད་བའི་དོན་ཅན་ཡིན་བ་དེའི་ཚེ། སྒྲུབ་པ་ནི་, ཕྱོགས་ ཀྱིས་ཉེ་བར་མཚོན་པའི་རྟགས་ཉིད་ལ་སོགས་པའི་བརྗོད་པ་རྣམས་སོ། །གང་ मोक, कान हाणा', माया पावर, माय པོ འི་རྒྱུད་ལ་ (བློ་ངོར་)སྒྲུབ་བར་བྱེད་པས་སོ།།་ - 74) . 'यदा पुनर्भावसाधनः सिद्धिः साधनमिति तदा पक्षादिवचनजन्यं प्रतिपा धगतं ज्ञानमेव साधनम् / तत्फलत्वात्पक्षादिवचनानाम् / कार्य कारणोपचारात। ___ यथेदं मे शरीरं पौराणं कर्मेति / / __1) अमरगमपू-साधनम्' वेष मरे वय आमनमोस. मनसे मामले मम'; मम (साधनम्) बेगम की संगत योग परम मर (गम मे म) ; TEBRAमई मग(परग) jད་ད; ཞེས བན། འདིར་ཕྱོགས་ཀྱིས་ཉེ་བར་མཚོན་བ; ཞེས་སྨོས་ཀྱང་མཚོན་པ་ཙམ་ལས, དེ་སྒྲུབ་ ངག་གི་གན་ཁག་མིན་ཚུལ་ཅུང་ཟད་གོང་དུ་བརྗོ ད་ཐན་ལ། ཕྱོགས་བུ་སོགས་བཞེས་སྨོས་ པ འི - དྭགས་ ममम ममें - 'अतः पक्षो न निर्देश्यः। तथा प्रतिज्ञायाः प्रयोगे निराकृते तस्या निगमनमपि दूरापास्तमेव / तर्हि पक्षलक्षणं निरर्थकत्वात्कर्तुं न यूज्यते बौद्धस्य / ', "इत्यत्र,"सत्यमुक्तम् / न साधनवाझ्यावयवत्वावस्य लक्षणमुच्यते किन्तु शिष्यस्य सम्यक्त्वलक्षणपरिज्ञानार्थम् / अन्यथा अद्युपन्यस्तस्य पक्षस्य गुणदोषावजानन् कथं सद्गुणदोषविचार णायां प्रवणः स्यात्" / द्रष्टव्य न्या. व. पंजि. पृ. 43 / Diwage.in 2) यदि ज्ञानं साधनं भावपक्षे, तर्हि "पक्षादिवचनानि साधनमिति" कथमुक्तमिति (अत्राह कार्य-प्रतिपाद्यगतज्ञाने, कारणस्य = पक्षादिवचनस्य उपचारात् = समारोपात्" इति /