________________ निवेदन घणां वर्षांनी प्रतीक्षा कराव्या बाद 'नमस्कार स्वाध्याय' ना विशाळकाय ग्रंथनो प्रथम प्राकृत विभाग समाज असमक्ष मूकतां अत्यंत आनंद अनुभवीए छीए / लगभग सात वर्ष पहेलां आ ग्रंथन संशोधनकार्य शरू करवामां आव्यु हतुं। शरूआतमां एम लाग्युं के आ मुख्यत्वे संग्रहनुं कार्य छे अने थोडाक समयमा पूर्ण थई जशे; परंतु जेम जेम अनेक जैन ज्ञानभंडारो तपासता गया अने शोधखोळनी दृष्टिए ऊंडा ऊतरता गया तेम तेम जणायु के संग्रह करवामां पण खूब चीवट, चोकसाई तथा परिश्रमनी आवश्यकता छे अने तेना अनुवाद तेमज अर्थाभिव्यक्तिमां तो तेथी पण अधिक काळजीनी जरूर पडे छे। आ कारणे ज केटलाक फर्मा छपाई गया पछी पण खास करीने तेना अनुवाद अंगे असंतोष रह्यो; परंतु संस्था तेमज समाजना सद्भाग्ये पू. मुनिश्री जंबूविजयजी तथा पू. मुनिश्री तत्त्वानंदविजयजीनो निकट संपर्क थतां आ कार्य सरळ बन्यु / छपाई गयेल केटलोक अनुवाद न रुचतां लगभग बे तृतीयांश फर्मा व्यवस्थित सुधारीने फरी छपाववानी तेओश्रीए सूचना करी। आ सूचनानो अमे सादर स्वीकार को अने आवा. अपूर्व ग्रंथने बने एटलो शुद्ध, समृद्ध तेमज सुगम बनाववानी दृष्टिए पांत्रीश जेटला फर्मानुं पुनःमुद्रण करवानुं पण नक्की कर्यु। आ कारणे पण आ ग्रंथना प्रकाशनमा विशेष विलंब थवा पाम्यो। आ ग्रंथप्रकाशननी पाछळनो मुख्य उद्देश नव स्मरण पैकी प्रथम स्मरण "श्री नमस्कार महामंत्र" ने यथार्थ स्वरूपमा स्फुट करवानो छे। संस्था तरफथी प्रकाशित थयेल 'श्री प्रतिक्रमणसूत्र-प्रबोधटीका' ना त्रण भागमां नव स्मरण लई लेवानी भावना हती पण अति विस्तार थई जवाना कारणे मात्र पांच ज स्मरणनो तेमा समावेश करी शक्या / वळी, प्रबोधटीकार्नु संशोधनकार्य जेम जेम आगळ वधतुं गयु तेम लाग्यु के नव स्मरणो पैकी दरेक स्मरण पर एटलु बधुं विस्तृत अने समृद्ध साहित्य रचायेलुं छे के प्रत्येक स्मरण पर एक मोटो ग्रंथ प्रकट करी शकाय। आ संजोगोमां संस्थाना प्रमुख शेठ श्री अमृतलालभाईने दरेक स्मरण पर स्वतंत्र ग्रंथ प्रकट करवानी प्रेरणा थई अने ते पैकी प्रथम स्मरण "श्री नमस्कार मंत्र" अंगेनो ग्रंथ सौथी पहेलां हाथ पर लीधो। "श्री नमस्कार मंत्र" - संग्रहकार्य आगळ वधतुं गयुं तेम जणायुं के आ परममंत्रना माहात्म्य माटे एटलं बधुं अने एवं सुंदर, उत्तम तेमज विस्तृत साहित्य छे के तेने मात्र एक ज ग्रंथमा प्रकाशित करी शकाशे नहि; कारणके तेम करतां तेनुं प्रकाशन करवामां घणो समय जशे एटलं ज नहीं पण पुस्तकनु कद पण घणुं वधी जशे। तेथी आ बधा साहित्यने त्रण विभागमा प्रकाशित करवानो निर्णय कोः-(१) नमस्कार स्वाध्यायः प्राकृत विभाग (2) नमस्कार स्वाध्यायः संस्कृत विभाग (3) नमस्कार स्वाध्याय : अपभ्रंश-हिंदी-गूजराती विभाग। तेमाथी लगभग साडा पांचसो पृष्ठ प्रमाणनो प्रथम प्राकृत विभाग रजू करीए छीए। बाकीना बे विभाग पण संपूर्ण तैयार छे। तेनुं मुद्रणकार्य झडपथी थशे तो ते बन्ने विभागोन प्रकाशन करतां झाझो समय लागशे नहीं। प्रस्तुत प्रकाशनमां अनेक पूज्य मुनिवरो, व्यक्तिओ तेमज संस्थाओनो महामूलो फाळो छे; एटले आ ग्रंथ अनेक विद्वानोना सामूहिक प्रयासोनु शुभ परिणाम छे एम कहेवं विशेष समुचित छे / / संस्कृत अने प्राकृत भाषाना समर्थ विद्वान तेमज 'न्याय'ना ऊंडा अभ्यासी पू. मुनिश्री जंबूविजयजीए 'भगवतीसूत्र', 'महानिशीथसूत्र', 'चैत्यवंदनमहाभाष्य', 'ध्यानविचार' वगेरे नमस्कारविषयक संदर्भोनो संपूर्ण अनुवाद करी आपी अमारा कार्यने अतीव सरळ बनाव्यु छे। पू. मुनिश्री जंबूविजयजी तथा तेओश्रीना पूज्य गुरुदेव स्व. मुनिश्री भुवनविजयजीनो आ ग्रंथनी शरूआतथी ज खूब भावनाभर्यो आवकार मळ्यो छे अने तेना संशोधनमां सतत प्रेरणा, प्रोत्साहन तेमज सहकार प्राप्त थयेल छ। 'नयचक्र'ना संपादनकार्यमां सतत उद्यमी रहेवा छतां पू. मुनिश्री जंबूविजयजीए संस्थाना संशोधनकार्य माटे ज्यारे ज्यारे जरूर पडी त्यारे पोताना किंमती समयनो विना संकोचे भोग आप्यो छे अने ते उपकार बदल तेओश्रीना तथा स्वर्गस्थ मुनिश्री भुवनविजयजीना खूब ज ऋणी छीए / खास करीने पू. मुनिश्री जंबूविजयजीए अनुवादित करेल उपर्युक्त विषयो उपरांत बीजा पण घणा विषयोनी बाबतमां अमुक मूळपाठ नियत कखामा, भिन्न भिन्न पाठांतरोनी नोंध आपवामां तेमज उपयोगी पुस्तको अने प्रतो मेळवी आपवामां आगमप्रभाकर पूज्य मुनिश्री पुण्यविजयजीए अमने तात्कालिक सहकार आप्यो छे अने ते उपकार माटे तेओश्रीना अमे अत्यंत आभारी छीए।