________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। - तहा अट्ठारससीलंगसहस्साहिट्ठियतणू छत्तीसइविहमायारं जहट्ठियमगिलाए अहण्णिसाणुसमयं आयैरति त्ति पवत्तयंति त्ति आयरिया, परमप्पणो अ हियमायरंति आयरिया, सव्वसत्तस्स सीसगणाणं वा हियमायरंति आयरिया, पाणपरिच्चाए वि उ पुढवादीणं समारंभं नायरंति णारभंति नाणुजाणंति वा आयरिया, सुमहावरद्धे वि ण कस्सई मणसावि पावमायरंति त्ति वा आयरिया, एवमेते णामठवणादीहिं अणेगहा पन्नविजंति / तहा सुसंवुडासवदारे मणोयकायजोगत्तउवउत्ते विहिणा सरवंजणमत्ताबिंदुपयक्खरविसुद्धदुवालसंगसुयनाणज्झयणज्झावणेणं परमप्पणो अ मोक्खोवायं झायंति ति उवज्झाए, थिरपरिचियमणंतगमपज्जवत्थेहिं वा दुवालसंग सुयनाणं चिंतंति अणुसरंति एगग्गर्माणसा झायंति त्ति वा उवज्झाए, एवमेतेहि [ मेएहिं ] अणेगहा पन्नविजंति / [आचार्यनो अर्थ-] शरीरमां. अढार हजार शीलांगने धारण करनारा जेओ छत्रीश प्रकारना आचारोने स्मार्थपणे ग्लानि विना प्रतिसमय आचरे छे-प्रवावे छे ते 'आचार्य' कहेवाय छे। बीजाना मने पोताना हितनुं आचरण करता होवाथी पण ते 'आचार्य' कहेवाय छ / प्राणनो नाश थतां सुधीये पृथ्वीकाय वगेरे जीवनो समारंभ करता नथी, करावता नथी अने करवानी आशा आपता नयी तेथी पण तेओ 'आचार्य' कहेवाय छे / कोईए मोटो अपराध को होय तोये तेओ कोईनुं 15 मनथीये पाप आचरता नहीं होवाथी 'आचार्य' कहेवाय छ। आ प्रकारे नाम-स्थापना वगेरेथी अनेक प्रकारे तेमनी प्ररूपणा करवामां आवे छे / [उपाध्यायनो अर्थ-] जेओ आस्रवनां द्वार बंध करी; मन, वचन अने कायाना योगमा लागी जई; विधिपूर्वक खर, व्यञ्जन, मात्रा, बिंदु, पद अने अक्षरोथी विशुद्ध एवां बार अंगोरूप श्रुतज्ञान- पोते अध्ययन 20 करीने तथा वीजाने अध्ययन करावीने बीजाना अने पोताना मोक्षना उपाय- ध्यान करे छे ते 'उपाध्याय' कहेवाय छे / अथवा जेओ अनंतगम अने पर्यायना अर्थो वडे स्थिर परिचित बार अंगोरूप श्रुतज्ञानतुं चिंतन करे छे, अनुस्मरण करे छे अने एकाग्र मनथी ध्यान करे छे ते 'उपाध्याय' कहेवाय छे / आ प्रकारे अनेक रीते उपाध्यायनी व्याख्या करवामां आवे छे / 1. अहनिसा M, महण्णिसा° P / . 2. रति पर्व / / 3. ति त्ति भय° M / 4. °या भव्वसत्तसीस. P / 5. सुट्टमवरद्धे M, सुहमावरद्धे B / 6. °वइका P / 7. वाय झा° P / ८.चितिति / / 9. माणसे झा / / 10. °तेहि अॅP।