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________________ सिरिमहानिसीहसुत्तसंदभो। [प्राकृत सनरामरासुरस्स णं सव्वस्सेव जगस्स अट्ठमहापाडिहेराइप्याइसओवलक्खियं अणण्णसरिसमचितमाहप्पं केवलाहिट्ठियं पवरुत्तमत्तं अरहंति त्ति अरहंता / असेसकम्मक्खएणं निद्दड्डमवंकुरताओ न पुणेह भवंति जम्मति उववज्जंति वा अरुहंता वा णिम्महियनिहँयनिहलियेविलीयनिट्ठवियअभिभूय सुदुज्जयासेसअट्टपयारकम्मरिउत्ताओ वा अरिहंतेति वा, एवमेते अणेगहा पन्नविजंति परूविजंति 5 आघविज्जति पट्टविजंति दंसिज्जंति उवदंसिजति / / तहा सिद्धाणि परमाणंदमहूसवमहाकल्लाणनिरुवमसोक्खाणि णिप्पकंपसुक्कज्झाणाइअचिंतसत्तिसामत्थओ सजीववीरिएणं जोगनिरोहाइणा महापयत्तेण ति सिद्धा, अर्दुप्पयारकम्मक्खएण वा सिद्धं सज्झमेतेसिं ति सिद्धा, "सियं झायमेसिमिति वा सिद्धा, सिद्धे निट्ठिए पहीणे सयलपओयणवायकैयंबमेतेसि मिति सिद्धा। 10 एवमेते इत्थीरिसनपुसंसलिंगण्णलिंगगिहिलिंगपत्तेयबुद्धबोहिय जाव णं कम्मक्लयसिद्धाईभेएहि णं अणेगहा पन्नविजंति / [अरिहंत (वगेरेनो संक्षिप्त ) अर्थ-] ___ मनुष्य, देवता अने दानवोवाळा आ समग्र जगतमा आठ महाप्रातिहार्य वगेरेना पूजातिशयथी उपलक्षित, अनन्यसदृश, अचिंत्य माहात्म्यवाळी, केवलाधिष्ठित, प्रवर उत्तमताने जेओ योग्य 15 छे ते 'अरहंत' छे। समग्र कर्मोनो क्षय थवाथी, संसारना अंकुरा बळी जवाथी फरीवार अहीं आवता नथी, जन्म लेता नथी, उत्पन्न थता नथी ते कारणे ए 'अरुहंत' पण कहेवाय छे / वळी, तेमणे आठ प्रकारना कर्मरूपी शत्रुओने मथी नाख्या छे, हणी नाख्या छे, दळी नाख्या छे, पीली नाख्या छे, नसाडी मूक्या छे अथवा पराजित कर्या छे; तेथी ते 'अरिहंत' पण कहेवाय छ / आ रीते तेओ अनेक प्रकारे कहेवाय छे, निरूपण कराय छे, उपदेश कराय छे, स्थापन कराय छे, 20 दर्शावाय छे अने बधी रीते बतावाय छे। [सिद्धनो अर्थ-] परम आनंदरूप, महोत्सवरूप, महाकल्याणरूप, अनुपम सुखने अचळ एवा शुक्लध्यान वगैरेनी अचिन्त्य शक्तिना सामर्थ्यथी जीवना पराक्रमपूर्वक योगनो निरोध करवा वगेरे वडे जेओए महाप्रयत्नथी सिद्ध कयुं छे ते 'सिद्ध' कहेवाय छे / वळी, आठ प्रकारनां कर्मोनो क्षय करवाथी सिद्ध 25 थया छे ते 'सिद्ध' कहेवाय छ / बांधेलां कर्मो तेमनां भस्मीभूत थयां छे तेथी पण ते 'सिद्ध' कहेवाय छ / अथवा तेमनां सकल प्रयोजनो सिद्ध एटले समाप्त थई गयां छै तेथी पण ते 'सिद्ध' कहेवाय छ। आ रीते स्त्रीलिंग, पुरुषलिंग, नपुंसकलिंग, अन्यलिंग, (वेश ) गृहस्थलिंग, प्रत्येकबुद्ध अने बुद्धबोधितथी मांडीने यावत् कर्मक्षयसिद्ध वगैरे अनेक रीते सिद्धोनी प्ररूपणा कराय छ / 1. मप्पमेयं के°P। 2. त्तमं / 3. °त्ताउ न / 4. यणिहूय P / 5. विलय P, विल्लिय SBI 6. तेइ वा P / 7. ति महा B / 8. महक P / 9. महपयत्तेणेति P, महापयत्तेणिति A / 10. अट्ठपयार° A P / 11. सियमज्झाय° P, सियमझोय B / 12. कयं च मे P / 13. पुरुस M / 14, सगलिंग MI 15. सिद्धा य में /
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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