SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 581
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 534 शुद्धिपत्रक [प्राकृत पंक्ति अशुद्ध 5 सम्यक्त्वदान१० णिद्दद्ध 10 वित्थिण्णाणाणसा 12 तीहि 16 मादक 18 पूजाने योग्य 18 अहंन् 18-21 केमके;......सममवी जोईए। , शुद्ध °सम्यक्त्व-दानणिद्ध वित्थिण्णाण्णाणसा तिहि माफक पूजाने (अथवा अतिशय अने पूजाने) योग्य 'अर्हन्' देव, असुर अने मनुष्योने प्राप्त थयेली पूजाओथी च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवल अने निर्वाण ए पांच कल्याणकोमां देवोए करेली पूजाओने अथवा अतिशयोने योग्य होवाथी 'अर्हन्' कहेवाय छे / (अथवा-देव, असुर अने मनुष्योने प्राप्त थयेल पूजाओथी च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवल अने निर्वाण ए पांच कल्याणकोमां देवो वडे करायेल अधिक अतिशयवाळी पूजाओने योग्य होवाथी 'अर्हन्' कहेवाय छे / ) प्रगट थयेल अनंतज्ञान, x अहीं ज रह्या रह्या दोषरूप समुद्रने 22 अनंतज्ञान, 23 प्रगट थतां 24 अहीं 25 रह्यां 27 गया 29 दोषोनी 31 समुद्रमांथी 24 होता? 25 सत्त्व 28 सत्त्वरूप सत्त्वनी स्वभावर्नु गुण५ बहि 13 जमणे 14 लीधा छे, जे होतो? सत्ता सत्तारूपे सत्तानी स्वभावनो गुणनो बहिः जेमणे लीधा छे, जेओ वज्रशिलाथी निर्मित अभाग्न प्रतिमानी जेम अभेद्य संस्थान (आकृति) वाळा छे, सर्व अवयवो वडे जेओ सर्व तेओ (सिद्धो) 15 संपूर्ण 15 जे 16 ते सिद्ध छे 21 समुद्र समान 29 फलायेली 29 आचरण समुद्रनी जेम फेलायेली (दोषोनु) स्मारण
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy