________________ चउसरणपयन्नासंदभो। प्राकृत -- परिचय प्रकीर्णक ग्रंथोमा 'चउसरणपयन्ना' ग्रंथ अत्यंत प्रसिद्ध छ / तेना रचयिता चरमतीर्थपति श्रमणभगवान श्री महावीर प्रभुना पवित्र हस्ते दीक्षाने प्राप्त थयेला श्रीवीरभद्र मुनि छ / ग्रंथनी भाषा सुंदर छे / अनुप्रासादि अलंकारो पण तेमां छे / गाथाओनो भाव पण बहु गंभीर छ / तेमाथी 5 प्रस्तुत ग्रंथने उपयोगी एवी गाथाओ अनुवाद साथे अहीं रजू करी छ / प्रकीर्ण नासेइ चोर-सावय-विसहर-जल-जलण-बंधण भयाइं / चिंतिजंतो रक्खस-रण-राय-भयाई भावेण // 1 // -(श्रीमहानिशीथ) जामिणि-पच्छिम-जामे, सव्वे जग्गन्ति बाल-बुड्ढाइ / परमिटि-परम-मंतं, भणंति सत्तढुवाराओ // 2 // .. -(यतिदिनचर्या) .. थुइ-बंदणमरहंता, अमरिंद-नरिंद-पूयमरहंता। , सासयसुहमरहंता, अरहंता हुतु मे सरणं // 3 // __ -(श्रीचतुःशरण) पंच-नमुकार-समं अंते वचंति जस्स दण पाणा / सो जइ न जाइ मुक्खं, अवस्स वेमाणिओं होइ // 4 // -(प्रकीर्ण) 20 भावथी चिंतन करातो आ नमस्कार चोर, श्वापद, विषधर, जल, अग्नि, बंधन, राक्षस, रण-संग्राम अने राजा तरफथी थता भयोनो नाश करे छे // 1 // रात्रिना पाछला प्रहरे बाल, वृद्ध आदि सघळा (मुनिओ) जाग्रत थइ जाय छे अने परमेष्ठि-परममंत्रने सात-आठवार भणे छे // 2 // जेओ स्तुति अने वंदनने योग्य छे, अमरेन्द्रो अने नरेन्द्रोनी पूजाने योग्य छे तथा शाश्वत 25 सुखने योग्य छे, ते श्रीअरिहंतभगवंतो मने शरण आपनारा थओ // 3 // . अंत समये जेना दस प्राणो पंच-नमस्कारनी साथे जाय छे, ते जो मोक्षने न पामे तो अवश्य वैमानिक देव थाय छे // 4 //