________________ [43] सिरिदेविंदसूरिविणिम्मिय-सुदंसणाचरिय' संदब्भो। [अरिहंताइवण्णनं] रागद्दोसकसाए, दुजयपंचिंदियाणि करणतियं / जेहि इमे अरी हणिया, अरिहंता मज्झ ते सरणं // 1 // णागिंदसुरिंदचंदखयरिंदविहियपूयं जे। अरहंति तह सिवगई, अरहंता मज्झ ते सरणं // 2 // ‘खविऊण पुण्णपावं, सयलमणिचं मुणेवि णाणेणं / जे पत्ता परमपयं, ते सिद्धा मे सया सरणं // 3 // चरणकरणप्पहाणा, समिईगुत्तीसु निच्चमुजुत्ता।.. समसत्तुमित्तचित्ता, ते मज्झ सया मुणी सरणं // 4 // पंचासव-पंचिंदियनिग्गहणो चउक्कसायविजयपरो। जो केवलिपण्णत्तो, धम्मो सो होउ मह सरणं // 5 // अनुवाद रागद्वेषरूप कषायो, जीती न शकाय एवा पंचेद्रियना विषयो अने मन, वचन तेमज कायारूप त्रणं करणो—आ शत्रुओने जेमणे हण्या छे ते अरिहंत भगवान मारुं शरण छे // 1 // - नागेंद्रो, सुरेंद्रो, चंद्र अने विद्याधरोए करेली पूजाने जेओ योग्य छे तथा जे मोक्षगतिनी योग्यतावाळा छे; ते अरिहंतो मारुं शरण छे // 2 // ___ पुण्य अने पापने खपावी, बधुंये अनिय छे एम ज्ञानथी जाणीने, उत्कृष्ट स्थानने जे प्राप्त 20 थया छे ते सिद्ध भगवानो सदा मारुं शरण छे // 3 // जे चरण अने करणमा श्रेष्ठ छे, समिति अने गुप्तिमा जे हमेशां उद्यमशील छे अने शत्रु .. तेमज मित्रमा समान चित्तवाळा छे ते मुनिओ सदा मारुं शरण छ / // 4 // पांच आश्रव अने पांच इंद्रियोनुं दमन करावनार, चार कषायने जीताववामां तत्पर अने केवलीओए जे उपदेशेलो छे ते धर्म मारुं शरण हजो // 5 // 25