________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 499 उप्पाइअसदहणो असदहाणे वि देइ जो बोहिं / संसारनासिरो हं तं साई चिय विहेमि गुरुं // 67 // व्याख्या-अश्रद्दधाने जिनप्रणीतजीवादिपदार्थ तथेति प्रत्ययरहितेऽपि उत्पादितश्रद्दधानः जनितास्तिक्यबुद्धियों बोधिं ददाति / संसाराद् नाशिता नशनशीलोऽहं तमेव साधुं गुरुं विदधामि // 67 // पञ्च वि अरहन्ताई परमेट्ठी झाह झाअह किमन्नं / होऊण निश्विकप्पा पसमरया होअऊण तहा // 68 // व्याख्या-भो भव्याः निर्विकल्पाः एते ध्येया न वेति संशयरहिता भूत्वा तथा प्रशमरता उपशमपरा भूत्वा पञ्चापि . अर्हदादीन् ध्यायत / किमन्यं हरिहरादिकं ध्यायत / हरि-हरादिध्यानम् अपहाय अर्हध्यानपरा भवतेति भावः // 68 // (जिनेश्वरोए प्ररूपेला पदार्थो उपर ) श्रद्धा विनाना मनुष्यने पण श्रद्धालु बनावता जेओ 10 बोधि-सम्यक्त्व आपे छे ते साधु भगवंतने संसारथी मुक्त थवा माटे प्रयत्न करतो हुँ गुरु तरीके स्वीकारूं छु // 67 // (हे भव्यजीवो ! मनमां ) कोइ पण जातनो विकल्प कर्या सिवाय अर्थात् निःशंक थईने तेमज प्रशमपरायण थइने अर्थात् प्रशमरसमां निमम बनीने अरिहंत आदि पांचे परमेष्टि भगवंतोनुं ध्यान धरो। बीजानुं शा माटे ध्यान धरो छो? अर्थात् बीजानुं ध्यान त्यजीने अरिहंतादि पांच 15 परमेष्ठिओनुं ध्यान करवामां परायण थाओ // 68 // प्राकृतव्याश्रय संदर्भ परिचय साहित्यना विद्वानने आचार्य श्रीहेमचंद्रसूरिनो परिचय आपवो ए तो सूर्यनी सामे आरसी धरवा जेवी वात गणाय; छतां प्रसंगवश तेमना समय विषे ख्याल आपवो जरूरी छ। तेओ सं. 1145 मां जन्म्या हता अने मात्र छ-सात वर्षनी उंमरे तेमणे श्रीदेवचंद्रसूरि पासे 20 दीक्षा लीधी। जैनतत्त्वज्ञान तेमज अनेक शास्रोनो अभ्यास करी हेमचंद्रसूरि नामे प्रसिद्धि मेळवी / तेमणे वाङ्मयना लगभग बधा विषयो उपर काबू मेळव्यो हतो। आ महान अभ्यासीए व्याकरण, . छंद, साहित्य, कोश, न्याय योग वगेरे विषयना ग्रंथोनी रचना करी छे, महाकाव्यो पण रच्यां छे। व्याकरणविषयक 'व्याश्रय'काव्यनी संस्कृत अने प्राकृत भाषामां रचना करी छ / तेमांथी प्राकृत व्याश्रयमां नमस्कारविषयक केटलीक सुंदर गाथाओ जोवामां आवी ते अमे अहीं संग्रही 25 तेना अनुवाद साथे प्रगट करी छ / __ आ सिवाय तेमना बीजा केटलाय ग्रंथोना संदर्भो अमे लीधा छे; जे संस्कृत विभागमा छ।