________________ [41] श्रीमद्हेमचन्द्रसूरिविरचितस्य प्राकृतघ्याश्रयमहाका व्यस्य श्रीपूर्णकलशगणिरचितटीकोपेतस्य ___सप्तमसर्गस्य संदर्भः। सोअवसा रोतूण वि रोत्तुमणा विम्हरन्ति रोत्तव्वं / . दगुण जाण मुत्ति, अरहंताणं नमो ताणं // 52 // व्याख्या-शोकवशात् स्वबन्धुवियोगसमुद्भवदुःखपरतन्त्रत्वाद् रुदित्वापि रोदनं कृत्वापि रोदितुमनसः रोदनपरायणचेतसः प्राणिनः येषां मूर्ति वपुर्दृष्ट्वा रोदितव्यं विपन्नस्वबान्धवादिकं विस्मरन्ति न स्मृतिपथमानयन्ति तेभ्योऽहद्भयो नमः नमस्कारोऽस्तु // 52 // जे दट्टव्वे दटुं, इन्दो काहीअ लोअणसहस्सं / दंसणतत्तिं काउं, अरिहंताणं नमो ताणं // 53 // व्याख्या-यान् द्रष्टव्यान् लोकातीतसौभाग्यादियुक्तत्वाद् वीक्षणीयान् द्रष्टुं दर्शनाय लोचनसहस्रमिन्द्रः अकरोत् अकार्षीत् चकार वा / दर्शनमपि किमर्थमित्याह / दर्शनेन निर्निमेषवीक्षणेन तृप्ति आत्मनः संतोषं कर्तुम् / तेभ्योऽर्हद्भयो नमः // 53 // काऊणं कायव्वं, कम्मं काहिन्ति जे ण पुणरुत्तं / जगबोहमिच्छिराणं, अरहंताणं नमो ताणं // 54 // व्याख्या-कर्तव्यं सकलकर्मक्षयं कृत्वा ये 'पुणरुत्तम्' इति भूयोऽपि न कर्म करिष्यन्ति कर्तारो वा / वीतरागत्वाद् न मुक्तिमपहाय बुद्धवत् खदर्शनतिरस्कारनिवारणाय इह जन्म आसाद्य पुनरपि कर्म भन्स्यन्तीत्यर्थः / तेभ्यो जगद्बोधमेषितृभ्यः अभिलाषुकेभ्योऽर्हद्भयो नमः // 54 // अनुवाद (अरिहंत भगवंत-) (पोताना बांधवोना वियोगथी थयेला ) शोकने लीधे रडीने पण रडवानी इच्छावाळा अर्थात् सतत रुदन कर्या करता माणसो जेमनी मूर्तिनां दर्शन करीने रोदितव्य एटले मरेला बांधव आदिने मूली जाय छे ते अरिहंत भगवंतोने मारो नमस्कार हो // 52 // (अलौकिक सौभाग्य आदि गुणोने लीधे खास ) दर्शनीय जे भगवाननां दर्शन करवा 25 माटे तथा दर्शन करीने आत्मतृप्ति करवा माटे इंद्रे हजार आंखो बनावी ते अरिहंतोने मारो नमस्कार हो // 53 // (सकलकर्मक्षयरूप ) कर्तव्य करीने जे फरीथी कर्म करता (अर्थात् बांधता ) नथी अने जे जगतने प्रतिबोध करवानी अभिलाषावाळा छे ते अरिहंतोने नमस्कार थाओ / / 54 / / 1 इंद्रने संस्कृत भाषामां सहस्राक्ष (हजार आंखवाळो) कहेवामां आवे छे ए दृष्टिए अहीं ग्रंथकारे घटना करी छ / 15