________________ - [38] सिरिरयणसेहरसूरिविरइयसिरिसिरिवालकहातो पंचपरमिट्ठिपयाराहणविहिसंदब्भो // तं सोऊणं अइगरूअभत्तिसत्तीहिं संजुओ राया। अरिहंताइपयाणं करेइ आराहणा एवं // 1169 // अव० -तद्राज्ञीवचनं श्रुत्वाऽतिगुरुकेऽतिमहत्यौ ये भक्तिशक्ती, ताभ्यां संयुतः - सहितो राजा एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण, अहंदादिपदानां आराधनां करोति // 1169 // नवचेईहरपडिमा जिन्नुद्धाराइविहिविहाणेणं / नाणाविहपूआहिं अरिहंताराहणं कुणइ // 1170 // अव० -तथाहि - नव चैत्यगृहाणि-नव संख्यानि जिनगृहाणि, नव प्रतिमाः, नव जीर्णोद्धारा 10 इत्यादिना विधिना विधानं–निर्मापणं तेन, तथा नानाविधाः- अनेकप्रकारा याः पूजास्ताभिरर्हतःअर्हत्पदस्याराधनां करोति // 1170 // ('सिरिसिरिवालकहा'मां नवपदोनी आराधनाना प्रसंगे श्रीपाल महाराजा विधिपूर्वक तपस्या करे छे त्यारे राणी मयणासुंदरीए श्रीपाल महाराजाने जणाव्यु के, 'तमने मोटी राजलक्ष्मी मळी छे यारे तमे शक्ति अने भक्ति अनुसार नवपदोनी पूजा-आराधना करी तमारा मनोरथोने पूरा करो।') 15 आ प्रकारे ते राणीनुं वचन सांभळीने अतिभक्ति अने महाशक्तिवाळा (श्रीपाल) महाराजा अरिहंत वगेरे पदोनी आराधना आ प्रकारे करे छे—॥ 1169 // ___अरिहंत भगवंतनां नव चैत्यो, नव प्रतिमाओ, नव जीर्णोद्धारो वगेरे विधिपूर्वक करावीने तथा विविध प्रकारनी पूजाओ वडे ते अरिहंतपदनी आराधना करे छे / // 1170 // विवेचन अरिहंतपदनी आराधना करवा माटे अरिहंत भगवंतनां नव संख्या प्रमाण चैत्यो, 20 नव प्रतिमाओ, नव जीर्णोद्धारो करवा जोइए; तथा महोत्सवपूर्वक स्नात्रपूजा, पंचप्रकारी, अष्टप्रकारी, सत्तर प्रकारी, एकवीश प्रकारी, एकसो आठ प्रकारी अने सर्वतोभद्रा नामनी पूजाओ करवी-भणाववी जरुरी छ। __ अरिहंत भगवंतोए सिद्धदशानी प्राप्तिनो मार्ग बताव्यो छे माटे ज तेमनो बोध करावनार अरिहंतपदनी आराधना करवानुं विधान करवामां आवेलुं छे। ... . अरिहंतपदनी आराधना माटे अरिहंत आदि भगवंतोनी आराधना माटे मूर्तिओनुं अवलंबन जरूरी छे; केमके एवी मूर्तिओ आत्मदशाना आदर्शरूपे मानवामां आवेली छे; तेनाथी आत्मामां परमात्मभावनो ख्याल आवे छे / एवा परम आत्माओनी मूर्तिओ भराववी होय त्यारे खास करीने तीर्थंकर अवस्थामां तेओ सिंहासनमा बिराजमान होय तेवी कराववामां आवे छ / . 25