________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। .. तं तिगुणेणं मायावीएणं सुद्धसेयवण्णेणं / परिवेढिऊण परिहीइ तस्स गुरुपायए नमह // 201 // 11 // व्याख्या-तत्पीठादि लब्धिपदान्तं त्रिगुणेन शुद्धश्वेतवर्णेन मायाबीजेन-हीङ्कारेण परिवेष्टय परितः समन्ताद्वेष्टयित्वा तस्य परिधौ गुरुपादुकाः-गुरुपादन्यासान् यूयं नमत / अत्रायं भावः: सर्वयन्त्रस्योर्ध्व 'हाँ' कारं विलिख्य तस्य ईकारात् सर्वयन्त्रपरिक्षेपरूपां रेखां त्रिलियित्वा चतुर्थरेखार्द्धप्रान्ते 5 '' इत्यक्षरं लिखेत् / तस्य च परिधौ अष्टौ गुरुपादुकाः, पादुकाशब्दो यद्यपि नामकोशे उपानद्वाचक उक्तः, तथापि रूढ्या पादन्यासार्थोऽपि बोध्यः, बहुस्थानेषु तथा दर्शनात् // 201 // (11) तेने ( उपर्युक्त अर्थात् मूलपीठथी लब्धिपदो सुधीना त्रण वलयोना आलेखनने ) त्रिगुण अने शुद्ध श्वेत वर्णवाळा मायाबीज एटले ह्रींकार वडे चारे तरफथी वींटी लेवू / ते पछी तेनी परिधिमा गुरुपादुकाओं एटले गुरुना चरणकमलनो न्यास ( वलयाकारे ) करवो। 10 ____ अर्थात् समग्र यंत्रनी उपरना मथाळेथी ह्रौंकार आलेखीने तेना ईकारथी शरू करेली रेखाने मूळपीठ वगेरे वलयोनी आसपास कुंडलाकारे त्रण आंटा दईने वाळवी अने चोथो आंटो अब्धो दईने छेडे 'क्रौं'कार ( अंकुशबीज ) ने आलेखq / // 201 // (11) 17. ॐ हाँ अहूँ णमो दसपुवीणं। 18. ॐ ह्रीं अहूँ णमो चउहसपुव्वीणं / 19. ॐ ह्रीं अझै णमो अटुंगनिमित्तकुसलाणं / 20. ॐ ह्रीं अहँ णमो विउव्वणइडिपत्ताण 21. ॐ ह्रीं अहँ णमो विजाहराणं / 22. ॐ ह्रीं अहँ णमो चारणलद्धीणं / 23. ॐ ह्रीं अहँ णमो पण्हसमणाणं। 24. ॐ ह्रीं अहँ णमो आगासगामीणं / 25. ॐ ह्रीं अहूँ णमो खीरासवीणं / 26. ॐ ह्रीं अहँ णमो सप्पियासवीणं / 27. ॐ ह्रीं अहँ णमो महुआसवीणं। 28. ॐ ह्रीं अहँ णमो अमियासवीणं / 29. ॐ ह्रीं अहूँ णमो सिद्धायणाणं। 30. ॐ ह्रीं अहँ णमो भगओ महइ महावीरवद्धमाणबुद्धरिसीणं / 31. ॐ हीं अहूं णमो उग्गतवाणं। 32. ॐ ह्रीं अहँ णमो अक्खीणमहाणसियाणं / (आ सोळ लब्धिपदो बीजी पंक्तिमां मूकवां।).. ॐ ह्रीँ अहँ णमो वढमाणाणं / 34. ॐ ह्रीँ अहँ णमो दित्ततवाणं / 35. ॐ हाँ अहँ णमो तत्ततवाणं। 36. ॐ ह्रीँ अहँ णमो महातवाणं / 37. ॐ ह्रीं अहँ णमो घोरतवाणं / 38. ॐ हाँ अहँ णमो घोरगुणाणं / ह्रौँ अहँ णमो घोरपरकमाण। 40. ॐ ह्रीँ अहँ णमो घोरगुणबंभयारीणं / 41. ॐ ह्रीँ अहँ णमो आमोसहिपत्ताणं। 42. ॐ ह्रीँ अहँ णमो खेलोसहिपत्ताणं। 43. ॐ ह्रीँ अहँ णमो जल्लोसहिपत्ताणं / 44. ॐ ह्रीँ अहँ णमो विप्पोसहिपत्ताणं। 45. ॐ ह्रीँ अहँ णमो सवोसहिपत्ताणं। 46. ॐ ह्रीँ अहँ णमो मणबलीणं / 47. ॐ ह्रीं अहँ णमो वयणबलीणं। 48. ॐ ह्रीँ अहँ णमो कायबलीणं / . (आ सोळ लब्धिपदो त्रीजी पंक्तिमा मूकवां / ) . ('लब्धिकल्प'मां आ पाठक्रममां थोडो फेरफार के.जओ 'सरिमन्त्रकल्पसंदोह' प्र.६४.मलभाग) १जो के पादुकानो अर्थ पगनी चाखडी अथवा जोडा थाय छे; पण अहीं पादुका एटले चरण-पगला समजवो, केमके परंपराथी एवो अर्थ घणे स्थळे लेवामां आव्यो छे।