________________ 470 सिरिरयणसेहरसूरिविरइय-'सिरिसिरिवालकहा'तो सिद्धचक्कयंतोद्धारविहिसंदब्भो। [प्राकृत तइअवलए वि अडदिसि दिप्पंत अणाहएहि अंतरिए। पायाहिणेण तिहि पंतिआहिँ झाएह लद्धिपए // 199 // 9 // व्याख्या-तृतीयवलयेऽपि अष्टसु दिक्षु अष्टावनाहतान् लिखेत् , ततो द्वयोर्द्वयोरन्तराले द्वे द्वे लब्धिपदे, एवमष्टस्वप्यन्तरेषु षोडश लब्धिपदानि प्रथमपतौ, एवं षोडशैव द्वितीयपतौ, एवमेव तृतीय5 पतौ / इत्थं दीप्यमानैरष्टमिरनाहतैरन्तरितानि-व्यवहितानि प्रादक्षिण्येन तिसृभिः पङ्क्तिभिः-श्रेणिभिरष्टचत्वारिंशल्लब्धिपदानि यूयं ध्यायत // 199 // (9) ते पणव-बीअ-अरिहं नमो जिणाणं ति एवमाईआ / ___ अडयालीसं णेआ सम्मं सुगुरुवएसेणं // 200 // 10 // व्याख्या-ते इति प्राकृतत्वान्नपुंसकस्य पुंस्त्वं, तानि लब्धिपदानि प्रणवः-ॐ कारो, बीजं10 हीङ्कारोऽहमिति सिद्धिबीजम् / एतत्पूर्वकं नमो जिणाणमिति पदं 'ॐ ह्रीँ अर्ह नमो जिणाणं' इत्येवमादीनि अष्टचत्वारिंशत्सङ्ख्यानि सम्यक् सुगुरोरुपदेशेन ज्ञेयानि / एतेषां नामानि माहात्म्यानि च लब्धिकल्पादवसेयानि, इह त्वाराधनविधिं विना पुस्तकलिखने दोष इति न लिखितानि // 200 // (10) त्रीजा वलयमा आठे दिशाओमां आठ अनाहत द्विकुंडलाकार '' बीज आलेखवा / ते बे अनाहतोनी अंतराले- पडखे (त्रण पंक्तिओ एटले वलयोमां) बे बे लब्धिपदो लखवां, ए प्रकारे 15 आठे अंतरालमां सोळ लब्धिपदो प्रथम पंक्तिमां, बीजां सोळ लब्धिपदो बीजी पंक्तिमा अने त्रीजां सोळ लब्धिपदो त्रीजी पंक्तिमां लखवां-आ प्रकारे देदीप्यमान एटले तेजस्वी आठ 'अनाहतोनी अंतराले प्रदक्षिणारूपे त्रण पंक्तिमां अडतालीस लब्धिपदोनुं ध्यान (माटे आलेखन करवू ) // 199 // (9) ते लब्धिपदो प्रणव एटले 'ॐ'कार, बीज एटले 'हाँ' कार अने 'अहं'ए सिद्धिबीज पूर्वक 20 'नमो जिणाणं' इत्यादि (ॐ ह्रीँ अहे नमो जिणाणं ए रीते) अडतालीस लब्धिपदो गुरुना उपदेशथी सारी रीते जाणी लेवा / आ लब्धिपदोनुं माहात्म्य 'लब्धिकल्प' थी जाणी लेवू / अहीं आराधनाविधि सिवाय एम ने एम लब्धिपदो बताववामां-पुस्तकमां लखवामां दोष छे तेथी लख्यां नथी / // 200 // (10) 1 अनाहत ॐपूर्वक हाँपूर्वकना पण मळे छ। 21. ॐ ह्रीँ अहँ णमो जिणाणं। 2. ॐ ह्रीँ अहँ णमो ओहिजिणाणं / 3. ॐ ह्रीँ अहँ णमो परमोहिजिणाणं / 4. ॐ ह्रीँ अहँ णमो सव्वोहिजिणाणं / 5. ॐ ह्रीँ अहँ णमो अणंतोहिजिणाणं / 6. ॐ ह्रीँ अहँ णमो कुट्टबुद्धीणं। 7. ॐ ह्रीं अहँ णमो बीयबुद्धीणं / 8. ॐ ह्रीँ अहँ णमो पयाणुसारीणं / ॐ ह्रीँ अहँ णमो आसीविसाणं / 10. ॐ ह्रीँ अहँ णमो दिट्टिविसाणं / हाँ अहँ णमो संभिन्नसोयाणं। 12. ॐ ह्रीँ अहँ णमो सयंसंबुद्धाणं। . हाँ अहँ णमो पत्तेयबुद्धाणं / / 14. ॐ ह्रीँ अहँ णमो बोहिबुद्धाणं / ॐ ह्रीँ अहँ णमो उजुमईणं / 16. ॐ ह्रीँ अहँ णमो विउलमईण। (आ सोळ लब्धिपदो पहेली पंक्तिमा मूकवां)