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________________ 420 पंचपरमिट्टिनमुक्कारमहथुत्तं / से एवाद्यपतौ नष्टो ज्ञेयः-इति जातस्त्रिंशत्तमो भङ्गः 3, 2, 1, 4, 5 / एवं ज्येष्ठं ज्येष्ठमङ्कमादि कृत्वाऽधस्तनकोष्ठकाद गणनेऽपीदृशमेवेदं नष्टरूपमायाति / यथान्त्यपतौ सर्वज्येष्ठमेककमादौ कृत्वाऽधस्तनकोष्ठकाद् गणनेऽक्षाक्रान्तस्थानेस्थितश्चतुष्कः, ततः स एव नष्टो लेख्यः / चतुर्थपतौ पूर्व पञ्चमपङ्क्तिस्थापितं चतुष्कं टालयित्वाऽधस्तनकोष्ठकात् सर्वज्येष्ठमेककमादिं कृत्वा गणनेऽक्षाक्रान्तत्वाभावाच्छून्यकोष्ठके 5 स्थितः पञ्चक एव नष्टस्थाने लेख्यः / तृतीयपतौ तथैव गणने अक्षाक्रान्तस्थाने स्थित एककोऽतः स एव तत्र नष्टो लेख्यः / द्वितीयपतौ प्राग्वज्येष्ठमप्येककं पूर्वस्थापितत्वात् टालयित्वा शेषं ज्येष्ठं द्विकमादि कृत्वा गणने अक्षाक्रान्तस्थाने स्थितो द्विकः स एव तत्र नष्टो लेख्यः / आद्यपतौ सर्वज्येष्ठावेकक-द्विको पूर्वस्थापितत्वेन त्यक्त्वा ज्येष्ठत्रिकमादौ दत्त्वा गणनेऽझाक्रान्तस्थाने स्थितस्त्रिकस्ततः स एव नष्टो लेख्यः / 3, 2, 1, 5, 4 / ईदृशं त्रिशत्तमं रूपं ज्ञेयम् / अनया रीत्या सर्वनष्टरूपाणि ज्ञेयानि // 23-24 // 10 अथोद्दिष्टके करणमाह उद्दिट्ठभंगअंकप्पमाणकोटेसु संति जे अंका। उद्दिट्ठभंगसंखा मिलिएहिं तेहिँ कायव्वा // 25 // व्याख्या-उद्दिष्टो यो भङ्गस्तस्य ये अङ्काः नमस्कारपदाभिज्ञानरूपा एक-द्वि-त्रि-चतुरादिकास्तत्प्रमाणास्तत्संख्यास्तावतिथा इत्यर्थः / ये कोष्ठास्तेषु ये अङ्काः परिवर्ताङ्काः सन्ति तैः सैवरेकत्रमीलितै15 अन्त्य पंक्तिमा सर्वज्येष्ठ एकने आदिमां करीने नीचेना कोठाथी गणतरी करतां अक्षथी युक्त स्थानमां चार स्थित छे, तेथी अक्षाकान्त स्थानमां चारने ज नष्ट स्थानमां मूकवो जोईए। चोथी पंक्तिमा पहेलां पांचमी पंक्तिमा मूकेला चारने छोडीने नीचेना कोठाथी सर्व ज्येष्ठ एकने आदिमा करीने गणतरी करवाथी अक्षथी युक्त न होवाथी शून्य कोठामा रहेला पांचने ज नष्ट स्थानमां लखवो जोईए। त्रीजी पंक्तिमां ते ज प्रमाणे गणतरी करवाथी अक्षथी युक्त स्थानमा एक रहेलो छे तेथी तेने 20 (1) ज नष्ट स्थानमां लखवो जोइए। बीजी पंक्तिमा पहेलांनी माफक पहेला मूकेला होवाने लीधे ज्येष्ठ पण एकने छोडीने शेष ज्येष्ठ बेने आदिमां करीने गणतां अक्षथी युक्त स्थानमां बे रहेला छे तेथी तेने (2 ) ज अक्षथी युक्त स्थानमां लखवो जोइए, प्रथम पंक्तिमा पहेला मूकेला होवाथी सर्व ज्येष्ठ एक अने बेने छोडीने ज्येष्ठ त्रिकथी लइने गणतरी करतां अक्षथी युक्त स्थानमा त्रण छे तेथी तेने अहीं प्रथम पंक्तिमां लखवो जोईए जेथी ३२१५४-आबुं त्रीसमुं रूप थयुं // 24 // 25 श०-उद्दिष्ट भांगाना अंको प्रमाणेना कोठाओमां जे आंकडाओ रहेला छे, ते बधाने मेळवीने उद्दिष्टभांगानी संख्या बनाववी जोइए // 25 // वि०-हवे उद्दिष्टनी विधि काठाओनी रीते बतावे छे: उद्दिष्ट ( बतावेलो) जे भांगो छे, तेना जे नमस्कारपद चिह्नरूप एक, बे, त्रण, चार वगेरे 30अंको छे, तेटला जे काठोओ छे, तेमां जे परिवर्ताक छे, ते बधाओनो सरवाळो करवाथी उद्दिष्टभंगनी संख्या जणाई आवे छे। 1 'स' पदं नास्ति / प्रतौ।
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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