________________ [प्राकृत पंचपरमिटिनमुक्कारमहथुत्तं। अथ नष्टानयनमाह पइपंति एगकोट्ठय-अंकगहणेण जेहिं जेहिं सिआ। मूलइगंकजुएहिं नर्सेको तेसु खिव अक्खे // 23 // अक्खट्ठाणसमाई पंतीसु अ तासु नट्ठरूवाई / नेयाई सुन्नकोट्टयसंखासरिसाई सेसासु // 24 // व्याख्या-इह प्रतिपति एकैक एव कोष्ठकाङ्को ग्राह्यः / ततो यैर्यैः कोष्ठकाकैः परिवर्तसत्कैर्मूलपङ्तिसत्कैकयुतैनष्टाको नष्टभङ्गसंख्या स्यात् / तेषु तेषु कोष्ठकेष्वभिज्ञानार्थ हे शिप्य! त्वं अक्षान क्षिप-स्थापय // अथ द्वितीयगाथार्थः कथ्यते छोडीने लघु-अंकोने आदिमां करीने उपरना कोठाथी गणतरी करवी जोईए / मतलब के, पश्चानुपूर्वीथी 10 नव, आठ, सात, छ, पांच, चार वगेरे अंकोथी कोठाओने भरवा जोइए // 21 // श-अथवा ज्येष्ठ अंकथी लईने अने मूकेला अंकोने छोडीने नीचेना कोठाथी अंतिमथी लईने पंक्तिओमां गणना करवी जोइए // 22 // वि०-मोटा मोटा अंकोथी लईने नीचेना कोठाथी गणतरी करवी जोईए, मतलब के, पूर्वानुपूर्वीथी एक, बे, त्रण, चार, अने पांच वगेरे अंकोथी कोठाओने भरवा जोईए, नष्ट वगैरे 18 लावती वखते आ विषय स्पष्ट थई जशे // 22 // श०–प्रत्येक पंक्तिमां एक कोठाना अंकने ग्रहण करीने तेमां एक ऊमेरवाथी जे जे कोठाओना अंको तथा मूल पंक्तिना अंकोथी नष्टांक थई जाय ते कोठाओमां अक्षोने--कल्पितने मूको // 23 // नष्ट लाववानी विधि10 वि०-आ विधिमां प्रत्येक पंक्तिमा कोठाना एक एक अंकने ज लेवो जोईए, तेथी कोठाना परिवर्तकमां रहेला जे जे अंकोनी साथे मूल पंक्तिना एकने जोडी देवाथी नष्टांक अर्थात नष्ट भांगानी संख्या थई जाय, ते ते कोठाओमां चिह्न माटे अक्षोने मूकवा जोईए // 23 // श०–ते पंक्तिओमां अक्षस्थाननी समान नष्टरूप जाणवू जोईए, तथा बाकीनी पंक्तिओमां शून्य कोठानी संख्या प्रमाणे नष्टरूप जाणवू जोईए // 24 // 25 वि०-अक्षोथी युक्त जे कोठाओ छे, ते कोठाओनी संख्या प्रमाणे, एटले के, अक्षोथी युक्त कोठाओनी पहेली, बीजी, त्रीजी, चोथी अने पांचमी इत्यादि जे संख्याओ छे ते ज संख्या ते पंक्तिओमां नष्ट रूपोनी पण जाणवी / सारांश के, जे अक्षोथी युक्त कोठो छे ते ज नष्टरूप छे शेष पंक्तिओमां अर्थात् अक्षोथी रहित पंक्तिओमां शून्य कोठानी संख्यानी माफक नष्ट रूपोने लखवा जोईए। 1 कोष्ठाः / 2 को /