SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 462
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विभाग) नमस्कार स्वाध्याय। गतागुणनेऽपवादमाह नद्रुट्टिविहाणे जे अंका अंतिमाइपंतीसु / . पुल्वि ठविआ नहि ते गयंकगणणे गणिजंति // 18 // व्याख्या-नष्टोद्दिष्टविधौ येऽङ्काः पाश्र्वनुपूर्व्याऽन्त्यादिषु पङ्क्तिषु पूर्व स्थापिताः भवन्ति ते गताङ्कसंख्यायां क्रियमाणायां न गण्यन्ते / अन्त्यादारभ्याङ्कक्रमादायाता अपि टाल्यन्ते, ते ह्यन्त्यादिषु 5 पतिषु स्थितत्वेनापरेपतिष्वद्यापि नाधिकृताः, अतस्तान् टालयित्वा गताङ्कानां संख्या कार्येत्यर्थ भावना नष्टोद्दिष्टोदाहरणेषु कृता // 18 // अथ कोष्ठकप्रकारेण नष्टोद्दिष्टे आनिनीषुः पूर्व कोष्ठकस्थापनामाह पढमाए इगकोट्ठो उड्डअहोआययासु पंतीसु / एगेगवड्डमाणा कोट्ठा सेसासु सव्वासु // 19 // व्याख्या-इहो ऽध आयताः कोष्ठकपतयो रेखाभिः क्रियन्ते, तत्र प्रथमपसावेक एव कोष्ठकः, शेषपतिषु पूर्वपतित उत्तरोत्तरपशिष्वधस्तात् संख्ययैककवर्द्धमानाः कोष्ठकाः कार्याः // 19 // अथ कोष्ठकेष्वङ्कस्थापनामाह इगु आइमपंतीए सुन्ना अन्नासु आइकोडेसु / परिवट्टा बीएसुं दुगाइगुणिआ य सेसेसु // 20 // व्याख्या-आदिमपतौ प्रथमकोष्ठके. एक एव स्थाप्यः / अन्यासु द्वितीयादिपङ्क्तिवाद्यकोष्ठकाष्टकेषु शून्यान्येव स्थाप्यानि द्वितीयेषु कोष्ठकेषु परिवर्ताङ्काः स्थाप्याः। तथा द्वितीय कोष्ठकेषु त 54 मां बे ऊमेरतां 54 + 2 = 56 थया / हवे बीजा स्थानमा 5 छे, तेथी अहीं कोई गतांक नथी। प्रथम स्थानमा एक छे, तेथी अहीं 5, 4, 3, 2, गतांक होई शके, परंतु ते. पूर्वस्थापित होवाथी अहीं तेनी गणना करवानी नथी। तात्पर्य के कुलसंख्या 56 आवी तेमां एक 20 उमेरतां 57 थया, तेथी आ रूप 57 मुं छे // 17 // श०-नष्ट अने उद्दिष्टांक शोधवाना प्रसंगे अंतिम आदि स्थानमा जे अंकोनी पूर्वस्थापना करी छे तेने गतांको गणवामां आवता नथी // 18 // वि०-सरल छ / नष्ट अने उद्दिष्टनुं स्वरूप कोठाथी पण आवे छे / तेनो विधि ओगणीसमी गाथामां जणावेलो छे // 18 // श०-ऊपर अने नीचे लांबी लीटीओ खेंचवाथी पहेली पंक्तिमा एक कोठो थाय छे अने बाकीनी सर्व पंक्तिओमां अनुक्रमे एक एक वधारे थाय छे // 19 // वि०-ऊभी अने आडी लीटीओ दोरवाथी कोठा बने छ / तेमां पहेली पंक्तिमा एक 5 25 1 पिडिष्वद्यापि / 2 कोष्टकारेण A1 3 इहोोऽध AI 4 पूर्वपूर्व उत्त० A | 5 °कोष्टकेषु A /
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy