________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। नन्वेवमाचार्यादिः सा प्रामोति, क्वचित्काले आचार्येभ्यः सकाशादर्हदादीनां ज्ञायमानत्वात्, अत एव च तेषामेवात्यन्तोपकारित्वात् , नैवम् , आचार्याणामुपदेशदानसामर्थ्यमर्हदुपदेशत एव, न हि स्वतत्रा आचार्यादय उपदेशतोऽर्थज्ञापकत्वं प्रतिपद्यन्ते, अतोऽर्हन्त एव परमार्थेन सर्वार्थज्ञापकाः, तथा अर्हत्परिषद्रूपा एवाचार्यादयोऽतस्तान् नमस्कृत्यार्हन्नमस्करणमयुक्तम् , उक्तं च “ण य कोइवि परिसाए, पणमित्ता पणमए रन्नो" त्ति // 5 // शंका-जो तमे एम कहेशो तो आचार्योने ज प्रथम नमस्कार करवो जोइए; कारणके कोईक काळे अरिहंत वगेरे आचार्यों द्वारा ज जणाय छे तेथी आचार्यो ज अत्यंत उपकारी छ। समाधान-ए वात बराबर नथी, कारणके आचार्योमा उपदेश आपवानुं सामर्थ्य अरिहंतना उपदेशमाथी ज आवे छे; आचार्यो स्वतंत्र रीते उपदेशथी अर्थाने जणावता नथी। (अरिहंते जे आपेलो उपदेश तेना आधारे ज आचार्यो उपदेश आपता होय छे, परंतु स्वतंत्र रीते 10 नहीं) तेथी वस्तुतः अरिहंतो ज सर्व अर्थाने जणावनारा छे / वळी आचार्य वगेरे तो अरिहंतनी पर्षदारूप छे, माटे तेमने (आचार्य वगेरेने ) नमस्कार करीने अरिहतोने नमस्कार करवो ते अनुचित छ / ( आवश्यकनियुक्तिमां) कयुं छे के-“कोई पण माणस पर्षदाने प्रणाम करीने पछी राजाने प्रणाम करतो नथी।" परिचय 15 .. जैन आगमग्रंथो पैकी पांचमा अंग तरीके प्रसिद्ध 'श्रीव्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र', जेनुं बीजं नाम 'श्रीभगवतीसूत्र' छे, तेमां मंगलाचरणरूपे श्रीनमस्कारसूत्रनां पंचपरमेष्ठी पदोनो उल्लेख प्रथम करवामां आव्यो छे / ते सूत्र उपर नवांगीवृत्तिकार श्रीअभयदेवसूरिए व्याख्या रची छे / तेमांथी पांच पदोनी व्याख्या पूरतो भाग अहीं लेवामां आव्यो छे / आगमोदय समिति ( सूरत ) द्वारा वि. सं 1974 मा प्रकाशित 'श्रीमद् भगवतीसूत्रम्' 20 भा. 1 मां आ व्याख्या छपायेली छे / तेमां मुनिराज श्रीपुण्यविजयजी महाराजे प्राचीन अनेक हस्तलिखित प्रतिओ साथे मेळवीने मूळमां तथा व्याख्यामां पाठांतरो नोंघेलां छे / तेना आधारे आ सूत्र अने व्याख्या अमे अहीं मुद्रित करी छे / तेनो गुजरातीमां भावानुवाद करीने ते पण साथे प्रगट करेल छ / आ टीकाना कर्ता श्रीअभयदेवसूरि, श्रीजिनेश्वरसूरिना शिष्य हता / श्रीअभयदेवसूरिने 25 वि. सं. 1088 मां आचार्यपद मन्युं हतुं अने सं. 1120 थी 1128 सुधीमां नव अंगो पर तेमणे टीका रची हती / ए सिवाय 'पंचाशक प्रकरण', 'आगम अष्टोत्तरी प्रकरण' वगेरे अनेक ग्रंथो रच्यानी माहिती मळे छ। 1 आव०नि० गा० 1021 जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 159. 2 तेमनी विशेष माहिती माटे जुओः 'श्रीअभयदेवसूरिं। ले. पं. श्री बेचरदास, प्रका. श्री वाडीलाल एम्. पारेख, कपडवंज /