________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 325 सुरस्स समूहसत्थाहयस्स पुरिसस्स सिक्खवालंपि। वाविजह किन्हचाउद्दसीए तस्सोवरि जवाए य // 18 // परिणयफलाई सयसत्ततंतुणा गंथिऊण जो सीसे। बंधइ कयबलिपूओ अहिस्सो सो जणो होइ // 19 // कोलस्स सिरे निप्पन्न.......................। असिएहिं होइ वराहो तावय जिनं ते पुणो पुरिसो॥२०॥ सत्थाहनरतियस्स क कवालिलहाण कुसुमगलियाए / लोहतवेणं वेढिय वयणे रुवं चत्तारिसयं // 21 // रूपपरावर्त्तनम् // संचलिकाङ्गारमादाय, खरसूत्रेण भावयेत् / यस्मिन् वह्नौ क्षिपेत् तत्र, वह्निस्तम्भं करोति हि // 1 // रयणिजुतयं मंजिट्टा घर धूमंतं दुलियसलिलेण / दहिघयसहियं पि चढं कुण लेवं सयलगरलहरं // 2 // सेयपुणन्नवमूलं पूसे गहिऊण तंदुलजलेण / कुण तह सव्व विछिय छम्मासा नेह पवहति // 3 // तस्मिन्नहनि संजातं गोवत्सस्य पुरीषकम् / प्रथमं तगरोपेतं पुटिका सर्वविषापहा // 4 // गहिऊण महूयसारं नर-खर-वेसाणमुत्तपरिज वियं / दिनं नासे पाणे समत्थगहदप्पविसहरणं // 5 // आरिटुइंगुदिबीयं तियडुयचुन्नेन वट्टियं साई / पूसेडी चेव दाली तुंबयरसेण भाविया वडिया // 6 // नीसंदेहगहाणं रक्खस्स संनिवायसप्पाणं / घोणसइगुवीसाणं योगमणी सव्वदुट्ठाणं // 7 // एकू टंकण खारडउ मधपीपलिहि समाणु / मुणि वरसउं महटिहिं खंडइ भुवं हिमाणु // 8 // सोस( शोष )तृष्णायां गुटिका मुखे रिच्छदंष्ट्राहसं हस्ते बद्धा सर्पमुखस्तम्भः। कीरतरुमूलघडिया डक्का सिहिनलयवाइया नूणं / दोसुह चम्मयमढिया नयाण य चालणं कुणइ // 9 // __ब्रह्मा दण्डी ईश्वरीमूलं 1, कन्दो वा 2, रुद्रजटा 3, इन्द्रवारुणी 4, चक्रका 5, विष्णुक्रान्ता 30 6, बोडथेरी 7, वराहकर्णी 8; आभिः सुग्रीवमण्डलं लिखेदेककोणेषु / ड र ल क स ह मध्ये सुग्रीवमूर्ति कारयेत् / कोणान्ते-'ह्रीँ झीँ क्षीं क्लीं ॐ फट् स्वाहा।' पञ्चशब्दे तथा त्राम्बके वा तेन शब्देन शाकिन्याऽऽकर्षणं मोचाप्यन्ते // कासमर्दो निजां छायां, पयसि पश्यति यः स्फुटम् / तन्मूलं लागलीश्वेतगिरिकर्णकयोश्च मूलकम् // 6 // पाषाणमर्दितैरेभिर्लिख्यते दीपवर्तिकाम् / कजलेनाञ्जयेन्नेत्रे कुमार्या दोषवीक्षणे // .