________________ ... 15 नमस्कार स्वाध्याय। चक्रे द्वादशपत्राख्ये, मेषाद्याः वाममार्गणः। यवस्था तत्रतः सर्वे, भुक्तिः सार्द्धघटीद्वयम् // 6 // महामारी च विज्ञेया, अबलानां बलोत्कटा। समरे जयदा प्रोक्ता, पृष्ठिः दक्षिणसंस्थिता // 7 // पूर्वतो वामगामासाश्चैत्राद्या दिशि तुर्यगे। प्रहाराः सव्यमार्गेण, मासस्थानादि गण्यते // 8 // चातुरङ्गे यदा कोटे, जयदा पृष्ठिदक्षिणे / चलचतुरशीतीनां, क्षयदा क्षेत्रपालजा // 9 // त्रिशूलं त्रिशूलं च(चैव), त्रिशूलं कोणतुर्यगम् / त्रिकं च द्वादशानाह, रविचक्र समालिखेत् // 10 // आदौ तु रविं संस्थाप्य, ज्ञेयं जन्मभजं शशी। नवत्रिकं मृत्युदं तुर्य, क्लेशदं द्वादशं शुभम् // 11 // ग्लानदिनं प्रथममवलोक्य जल्पनीयं रविचक्रम् , तथा त्रिशूलेन भवेन्मृत्युः, द्वादशभिर्जयं तथा। शायन्ते सप्तभिर्भङ्गं, रविचक्रे न सोत्तमे // 12 // रविचक्रं समाप्तम् // सियबीयाससिरिक्खा, ति-छ-ति-छगम्मि जस्स रिक्खम्मि / धणहाणि-बुद्धिट्टाणाचुइला नखयभयपसाया // 13 // अश्विन्यादितृतीयं तु वारे शनौ गुरावपि / जयारिक्तातिथौ घाताः, क्रियते स्थविरे गणे // 1 // घाते नरचक्रम् शिरोमुखं न वामं च, हस्त-पादं च हृद्गलम् / दक्षिणं हस्तपादं च, लिखेत्तरं यथाक्रमम् // 14 // त्रिण्येकं च युग्मेषु द्वयं युग-युगानि च। शिरसि योऽर्द्धऋक्ष स्याद, ग्रहाः क्रूरा यथास्थिताः // 15 // रवेः पञ्चदशे चारिघातं भवतु निश्चितम् / भौमे रक्तं शनौ मृत्युरर्थहानिश्च राहवे // 16 // भुक्तैरंशेरधो याति, भुक्तिस्तिर्यविस्तरम् (?) / आदित्ये शुष्यते घातं, चन्द्रं च यत्र तत्र (2) // 17 // घातचक्र कोटचक्रम् धनिष्ठा भरणी पुष्यं, मघाऽऽश्लेषाचित्राफाल्गुनी। . रोहिणी पुनर्वसूत्तराषाढामध्ये ज्येष्ठा च रेवती // 18 // पूर्वाषाढा च भद्रा चोत्तरा मूलमृगास्तथा। उत्तराफाल्गुनीहस्तमा गर्भ नियोजयेत् // 20 // करावाहो शुभा गर्भ आगतैर्न च भिद्यते। मिर्मिश्रं भवेत् कार्यमधिके जयमादिशेत् // 21 //