________________ विभाग] नमस्कारस्वाध्याय। 291 कमसो लहुगुरू जाणह अक्खर लिक्खिहि नाउ वियाणह / संकलबंधिहि नाउ ठविजइ चूडामणिसारु स णिजइ // [14] ससि तइयं गुणह भूयं भूयदुयं सुज्झि पावए चउरो। चउरो पावेइ ससी संकलबंधं वियाणाहि // (15] अग ड ठ, ध प ल ख, इ घच ड, न फ व श, उ ऋछ ढ, त व ल ख, प क ज ण, च म य स, ऊ क्ष ऋट, द म र ह। ' अधरे उत्तरवग्गो उत्तरवग्गेण संजुयं अहरं / जो जाणइ एस वग्गो सो जाणइ तिहूयणं सयलं // [16] आलिंगिए नंदिकमो अहिधूमिए ददुर त्ति नायव्यो। दद्धे जाणह तुरओ अहरे गओ उत्तरे सीहो // [17] अ क ज ट न नन्द्यावर्तम् 1, क छ ड ध म मण्डूक[प्लुतम्] 2, च ठ द भ लं अश्वमोहितम् 3, ट थ व च क्ष गजवि]ललितम् 4, त फ ल ओ सिंहावलोकितम् 5, प र स य ड तसाचक्रम् (?) 6, य ब उ प ध ञ मृगचक्रम् 7, श इ ध ऋण मिंढाचक्रम् 8 // ___ संयुक्तं 1, असंयुक्तं 2, अभिहितं 3, अनभिहितं 4, अपघातितं 5, आलिङ्गितं 6, अभिधूमितं 7, दग्धं ८-अष्टप्रकाराः // 15 - षट्प्रकाराः प्रश्नाः गृह्यन्ते--आलिङ्गिताः 1, अभिधूमिताः 2, उत्तराक्षरसंयुक्ताः 3, अधराक्षरसंयुक्तासंयुक्ता अभिहिता 5, अनभिहिताश्चेति 6 / आलिङ्गिते तृतीयवर्गम् , अभिधूमिते चतुर्थवर्गम् , दग्धे पञ्चमम् / उत्तराक्षरसंयुक्ता ये विषमवर्गास्तैर्द्वितीयाष्टमं वर्गम् / यदा बद्धाक्षर उत्तरोऽधःस्थाने दृश्यते स एव उत्तराक्षरः // अथ बद्धाक्षरोऽधराक्षरोऽधःस्थितोऽधराक्षरसंयुक्तं पञ्चमवर्गमभिहिते स्ववर्गम् / अथ मस्वरसंयुक्ता 20 सर्वेऽक्षरा अभिहिताः / अन्यस्वरा अक्षरवर्जिता अनभिहिताः / ___ आलिङ्गितेऽवर्गे तृतीयवर्ग चवर्गमिति नन्द्यावर्तक्रमेण, अभिधूमितेऽवर्गे चतुर्थवर्ग टवर्गमिति अश्वमोहितक्रमेण, दग्धेऽवर्गे पञ्चमवर्ग तवर्गमिति मण्डूकप्लुतक्रमेण, उत्तराक्षरसंयुक्तेऽवर्गे द्वितीय (?) अष्टमवर्ग शवर्गमिति गजविलुलितक्रमण, अधराक्षरसंयुक्तेऽवर्गे सप्तमवर्ग यवर्गमिति सिंहावलोकितक्रमण, अनभिहितेऽवर्गे स्ववर्गः, एवं कादिवर्गेण मिण्ढाचक्रक्रमेण / प्रश्नाङ्कमष्टादशमिश्रितं कृत्वाऽष्टभिर्भागो25 हार्यः / शेषाङ्केन वर्गो लभ्यतेऽक्षरं नन्द्यावर्तक्रमेण // __ अ क च ट त प य शाऽऽदित्यादिग्रहाः / द्वादशमात्राभिः राशयः / ककारादिषु ङञणनमवर्जितेषु अष्टाविंशतिनक्षत्राणि / अक्षरेषु उत्तराधरसंज्ञा ग्रह-राशि-नक्षत्राणाम् / तथा दो तिन्नि पंच अट्ट य पंच य अट्ठा तह य दो तिन्नि। यंत्र नं. 1 समुद्रचक्रम् / चउरिक सत्त छक्का सत्त छक्का य चउरिका // [18] एयं भायनिबद्धा करेसु पण्हक्खरेसु चउकुट्ठा। चउकुट्टेहि वि गुणिया नामं ठामं वियाणाहि // [19] | अ उ ओ आ ऊ औ इ ए अं ई ऐ अः एकक्खरसंजोए तिन्नि चउक्काइ बार अंगाई। क ड म ख ड य ग ण र घत ल जा सा तेरसमत्ता सो जाणइ सयलचिंताओ॥ [20] | वर्गानुक्रमसंख्यया ङ थ व च द श छध ष | जन स एकत्रानुकृतो राशिः, सर्वमात्रासमन्विताः। समालोक्य त्रयो भेदाः, स्वरक र्गदलादिकाः॥ झ पहब फलट बक्ष | ठभज्ञ 5 8 130 6