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________________ ॥श्री शंखेश्वरपार्श्वमाथाय नमः॥ [1] भगवईसुत्तस्स मंगलायरणं॥ णमो अरहंताणं णमो सिद्धाणं . ममो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो सव्वसाहूणं // श्री अभयदेवसूरिरचिता भगवतीसूत्रवृत्तिः। नमो अरहंताणमित्यादि / तत्र नम इति नैपातिकं पदं द्रव्यभावसङ्कोचार्थम् , आह च- 10 * "नेवाइयं पयं दव्वभावसंकोयण पयत्थो"। मनःकरचरणमस्तकसुप्रणिधानरूपो नमस्कारो भवत्वित्यर्थः / केभ्य इत्याह-'अर्हग्यः' अमरवरविनिर्मिता. शोकादिमहाप्रातिहार्यरूपां पूजामर्हन्तीत्यर्हन्तः, यदाह भगवतीसूत्रना मंगलाचरणनो अनुवाद अरहंत भगवंतोने नमस्कार हो। सिद्ध भगवंतोने नमस्कार हो। आचार्य भगवंतोने नमस्कार हो। उपाध्याय भगवंतोने नमस्कार हो। सर्व साधु भगवंतोने नमस्कार हो। श्रीअभयदेवसरिरचित वृत्तिनो भावानुवाद 'नमो अरहताणं' वगेरे। अहीं 'नमः' शब्द नैपातिक पद छे अने तेनो द्रव्यसंकोच तथा भावसंकोच ए अर्थ छ; (कारणके आवश्यकनियुक्तिमां) कयुं छे के- " 'नमः' ए निपातरूप पद छे अने द्रव्यसंकोच तथा भावसंकोच ए एनो अर्थ छे / " .. मन, हाथ, पग तथा मस्तकना सुप्रणिधानरूप नमस्कार हो / कोने नमस्कार हो तो जणावे. केके, अरहंतोने नमस्कार हो / देवोए रचेली अशोकवृक्ष आदि (आठ) महाप्रातिहार्यरूप पूजाने 25 मेलो योग्य छे ते अरहंत कहेवाय छे / (आवश्यकनियुक्तिमां) कह्यु छ के-.. 20 आव०नि० गा.८९० / जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 114
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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