________________ [प्राकृत 'नवकारसारथवणं। श्वेतागस्थिपट्टके उपवेश्य तस्य पादुकां दण्डकं च प्रथमं ताम्बूलं चर्वाप्य श्वेतपट्टकं अधोगतं बन्धयेत् / अश्वस्थ अधोविभागपत्राणि नो वा पत्तनेत्यपत्राणि बन्धयित्वा चटति तत उद्योतपूर्वकं निधिं पश्यति / कपिलाया गोरोचना 1 / बदरिनृपहेमानाम् 2 // रसम् 2 / कर्पूरं पातालमधु सर्वाञ्जनं कुरु / पूर्वोक्तं तथैव-"ॐ हौँ स्वाहा / " औषध्युत्पाटनमन्त्रः // 5 हिलि हिलि मिलि मिलि कुलु कुलु ह्रीँ पार्श्वयक्षाय क्ष्ल्यू क्षाँ क्षीं हूं क्षौँ क्षः शिखाबन्धस्यास्त्रं रक्ष रक्ष सहाया रक्ष रक्ष स्वाहा // " शिखाबन्धः // "ॐ काली ह्रीं महाकाली किलि किलि विच्चे रक्ष रक्ष इदमञ्जनं सुपार्थो ज्ञापयति खाहा // " कज्जलाञ्जनरक्षामन्त्रः // सर्षपरक्तपुष्पैर्दिग्बन्धो दीयते क्षा क्षा VauN क्षः। तथा श्रीपार्श्वनाथमूलमन्त्रस्य जापः, भूतानि नाशयन्ति॥ . इति चूडामणिप्रस्तावेऽञ्जनं कथितम् // 10 पढम-दुसरा अरिहंता चउस्सरा सिद्ध-सरि-उवज्झाया। दुग-दुगसरा कमेणं नंदंतु मुणीसरा दुसरा // 12 // वननिवहो ककाई जेसि बीओ हकारपजंतो। नियनियसरसंजोगा सरेमि चूडामणिं तेसिं // 13 // 15 इति चूडामणितेयं ज्ञानं यथा-जीव-धातु-मूलानि // आइल्ला तिण्णि सरा सत्तम णवमो य बारसे जीवं / पंचमं छठेगारस धाउं सेसेसु तिसु मूलं // 1 // * जीवक्खरेक्कवीसा तेरह धाउक्खरा मुणेयव्वा / एयारस मूलगया पणयाला होंति सव्वे वि // 2 // * 20 य एवाधिकः स योनिः। अ आ इ ए ओ अः, क ख ग घ च छ ज झ ट ठ ड ढ, य श ह - 21 जीवाक्षराः। उ ऊ अं, त थ द ध, प फ ब भ, व स - 13 धात्वक्षराः / इऐ औ, ङ अ ण न म, र ल ष- 11 मूलाक्षराः। इतस्तावन्मूलादर्शे 'द्वादशयन्त्रिका' इत्येतत्प्रकरणं लिखितमस्ति, तस्याशुद्धिबाहुल्याद् नोद्धृतमत्र // *1 व्याख्या -आद्याः खरास्त्रय 'अ आ इ'। सप्तम 'ए'कारः। नवम 'ओ'कारः / 'अ' द्वादशमः / एते षद खराः जीवस्वरा विज्ञेयाः / 'उ'कारः पञ्चमः / 'ऊंकारः षष्ठः / 'अं एकादशमः / त्रय एते धातुखराः / चतुर्थ'ई'कारः। दशम 'औ'कारः। 'ऐ कारोऽष्टमः। एते त्रयो मूलस्वराः॥११॥प्रश्नव्याकरणाख्यं जयपाहुडनिमित्तशास्त्रम् ,पृ०३ क च ट चउक्के जीयं, अट्ठम-पढमंतिमे यकारे य / त प [य] चउक्के धाउं, वसे य मूलं तु सेसेसु // 12 // ज० पा० * 2. व्याख्या-पूर्वनिर्दिष्टाः खराः षट् 'अ आ इ ए ओ अः, क ख ग घ च छ ज झ ट ठ ड ढ, य श हाः एते जीवाक्षरा एकविंशतिः 21 / पूर्वोक्ता धातुखरास्त्रयः 'उ ऊ अंदश चान्ये 'त थ द ध प फ ब भ व सा' एते धात्वक्षरास्त्रयोदश 13 / 'ई ऐ औ, क अ ण न मा, र ल षा' एते मूलाक्षरा एकादश 11 / जीव-धातु-मूलसमेताः पञ्चचत्वारिंशदक्षराणि भवन्ति // 13 // ज०पा०पृ०३ केवलज्ञानप्रश्नचूडामणिः पृ० 24 //